मसालों की खेती : मसाले की खेती पर सरकार की ओर से सब्सिडी , होगी अच्छी कमाई

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क्यों करें मसालों की खेती?

किसान परंपरागत फसलों की खेती के साथ कुछ विशेष फसल की खेती करें ताकि अधिक लाभ मिल सके। वर्तमान में हमारे देश में परंपरागत खेती के अतिरिक्त अन्य फसलों की खेती भी की जा रही है। इसी क्रम में मसाले की खेती अपना विशेष स्थान रखती है। हमारे देश में मसाले की मांग और इसकी निर्यात में हो रही वृद्धि से किसानों की रुचि मसाले की खेती की ओर बढ़ रही है। हमारे देश के कई राज्यों में मसाला फसलों की खेती के अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं। मसाला फसलों की खेती करके किसान भाई काफी अच्छा लाभ प्राप्त कर रहे हैं। सरकार द्वारा भी मसाला फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार की ओर से मसाला फसलों की खेती के लिए 60% तक सब्सिडी दी जा रही है। किसान भाई सब्सिडी का लाभ प्राप्त करके मसाला फसलों की खेती कर सकते हैं।

मसाला फसलें और उनकी उन्नत किस्में

(1) सौंफ की खेती

मसाला फसलों में सौंफ का मुख्य स्थान है। सौंफ को मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है जो प्रत्येक घर में उपयोग होता है। सौंफ का उपयोग सब्जियों के अतिरिक्त अचार बनाने में भी किया जाता है। सौंफ को आयुर्वेद में त्रिदोष नाशक माना गया है। सौंफ का उपयोग आयुर्वेदिक दवाई बनाने और माउथ फ्रेशनर के रूप में भी किया जाता है। सौंफ की बाजार मांग भी बहुत अधिक है और इसी वजह से सौंफ की खेती को मुनाफा देने वाली खेती माना जाता है।
सौंफ की उन्नत किस्में: RF 101, RF 105, RF 125, RF 143, PF 35, NRCSSAF 1, गुजरात सौंफ 1, गुजरात सौंफ 2, गुजरात सौंफ 11 और हिसार स्वरूप आदि।

(2) जीरा की खेती

जीरा एक ऐसी मसाला फसल है जिसका प्रयोग सब्जी, दाल बनाने के अतिरिक्त दही या छाछ बनाने में भी किया जाता है। जीरे का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। जीरे की बाजार मांग वर्षभर बनी रहती है।
जीरा की उन्नत किस्में: RZ-19, RZ-209, RZ-223 और GC-4 आदि।

(3) हल्दी की खेती

मसाला वाली फसल में हल्दी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हल्दी का प्रयोग दैनिक जीवन में प्रतिदिन खाना बनाने में किया जाता है। हल्दी के बिना किसी भी प्रकार की सब्जी नहीं बनाई जा सकती। हल्दी में कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। हल्दी का प्रयोग सौंदर्य उत्पादों और हिंदू धर्म के पवित्र कार्यों में भी किया जाता है।
हल्दी की उन्नत किस्में: सुकर्ण, सुगंधन, सुरोमा, रोमा, मेघा, कृष्णा, रशिम, सोनिया, पूना, गौतम और गुन्टूर आदि।

(4) मिर्च की खेती

हरी मिर्ची का उपयोग अचार, सलाद और सब्जी में किया जाता है। मसाले के रूप में मिर्च की खेती किसानों को अच्छा लाभ देती है।
मिर्च की उन्नत किस्में: पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार, NP और 46A आदि।
आचार मिर्च की उन्नत किस्में: सिंधुर
शिमला मिर्च की उन्नत किस्में: अर्का गौरव, अर्का बसंत, अर्का मोहनी और पूसा दीप्ती आदि।

(5) धनिया की खेती

धनिया का प्रयोग सूखे पाउडर और हरी पत्तियों के रूप में किया जाता है। यह भोजन के स्वाद और सजावट के लिए उपयोगी होता है।
धनिया की उन्नत किस्में: RCR 41, RCR 435, RCR 480, RCR 728, RCR 436, RCR 446, RCR 684, ACR 1, CS 6, JD-1, GC 2, सिम्पो S 33, हिसार सुगंध, कुंभराज और पंत हरितमा आदि।

(6) अदरक की खेती

हमारा देश विश्व के अदरक उत्पादन का आधा हिस्सा पूर्ण करता है। भारत के लिए विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक मुख्य स्रोत अदरक है। अदरक एक व्यावसायिक फसल है जिसकी खेती कर किसान भाई बंपर कमाई कर सकते हैं। हमारे देश में अदरक की खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु, उत्तराखंड और असम राज्य में की जाती है। हमारे देश में अदरक उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान पर केरल राज्य है। किसान भाई कम खर्च में अदरक की खेती करके भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। अदरक की खेती से किसान भाइयों को दो फायदे हो सकते हैं। पहला गीली अदरक को बेचने पर और दूसरा अदरक को सूखा कर सोंठ के रूप में तैयार करके बेचने पर फायदा होता है।
अदरक की उन्नत किस्में: सुरूचि, सुरभी और सुप्रभात आदि।

(7) लहसुन की खेती

लहसुन खाने में उपयोग की जाने वाली फसल है। इसके बिना कोई भी सब्जी बनाना संभव नहीं होता। लहसुन का प्रयोग सब्जी बनाने के अतिरिक्त अचार और अन्य कई प्रकार से किया जाता है। इसके अतिरिक्त लहसुन का उपयोग अधिकांश मसालों और आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता है। लहसुन इम्युनिटी को बढ़ाने में सहायक होता है। लहसुन की बाजार मांग भी बहुत होती है। जितना लहसुन खाने में उपयोग होती है उसी प्रकार इसकी खेती से किसान भाई काफी अच्छी लाभ आय प्राप्त कर सकते हैं। बुंदेलखंड के किसान लहसुन की खेती करके काफी अच्छा लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
लहसुन की उन्नत किस्में: भीमा पर्पल, भीमा ओंकार, एग्रीफाउंड व्हाइट (G-41), एग्रीफाउंड पार्वती (G-313), यमुना सफेद (G-1), गोदावरी (सेलेक्शन-2) और T-56-4 आदि।

(8) मेथी की खेती

मैथी एक नकदी फसल है। दलहनी फसलों में मैथी का अपना मुख्य स्थान है। मैथी लिग्यूमनस कुल का पौधा है। मैथी के पौधे की लंबाई 1 फुट से भी कम होती है। मैथी की सब्जी बनाने के अलावा अचार और सर्दी के मौसम में लड्डू बनाकर भी खाया जाता है। मैथी का स्वाद कड़वा होता है किंतु महक अच्छी होती है। मैथी स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत फायदेमंद होती है। मैथी का प्रयोग डायबिटीज में चूर्ण बनाकर किया जाता है। हरी मैथी और मैथी दाने दोनों ही स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी हैं। मैथी की फसल से दो प्रकार से लाभ मिलता है। पहला हरी मैथी की पत्तियों से और दूसरा सूखे मैथी दानों से।
मैथी की उन्नत किस्में: RMT-143, RMT-305, अजमेर फेन्यूग्रीक-1, अजमेर फेन्यूग्रीक-2, अजमेर फेन्यूग्रीक-3, कसूरी मैथी और राजेंद्र क्रांति आदि।

मसाले की खेती पर सरकार की ओर से सब्सिडी

  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत कोल्ड स्टोरेज पर अधिकतम 5 करोड़ रुपए तक का अनुदान(Subsidy) दिया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत मसाले की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए खेती की लागत का 60% तक अनुदान प्राप्त हो जाता है।
  • मसाला फसलों की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर लागत का 40% या अधिकतम 5500 रुपए अनुदान(Subsidy) प्राप्त हो जाता है।
  • मसाला फसलों की जैविक खेती करने वाले किसान भाइयों को अतिरिक्त अनुदान दिया जाता है।
  • मसाले की जैविक खेती करने वाले किसानों को प्रति हेक्टेयर लागत का 60% या अधिकतम 15 हजार रुपए अनुदान प्राप्त हो जाता है।
  • मसाले से संबंधित प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिए लागत का 50% और अधिकतम 10 लाख रुपए अनुदान प्राप्त हो जाता है।
  • छंटाई करने, ग्रेडिंग, शॉर्टिंग की इकाई लगाने के लिए लगभग 50 लाख रुपए तक खर्च होता है।
  • छंटाई करने, ग्रेडिंग, शॉर्टिंग के लिए सरकार 40% अनुदान प्राप्त हो जाता है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत स्प्रिंकलर, फव्वारा और बूंद-बूंद सिंचाई के साथ ही अन्य पर भी अनुदान प्राप्त हो जाता है।
  • कीट रोग प्रबंधन के लिए प्रति हेक्टेयर लागत का 30% और 1500 रुपए अनुदान दिया जाता है।
  • पैकिंग इकाई लगाने के लिए लगभग 15 लाख रुपए का खर्चा आता है जिसमें 50% अनुदान प्राप्त हो जाता है।

भारत में मसाला फसलों में बढ़ोतरी के लिए संचालित योजनाएं

भारत में मसालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की विभिन्न विकास योजनाएं संचालित हो रही हैं जैसे – राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) और एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) आदि।
इसके अतिरिक्त किसान संवाद कार्यक्रम के तहत मसाला किसानों के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।ई-नैम (e-NAM) पोर्टल पर मसालों की नीलामी और मूल्य निर्धारण को पारदर्शी बनाया गया है।मसाला उत्पादन में डिजिटल तकनीक और AI आधारित फसल प्रबंधन पर जोर दिया जा रहा है।

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