सोयाबीन की MSP पर खरीद
मध्यप्रदेश, जो देश का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक राज्य है, इस साल एक बार फिर से सोयाबीन की रिकॉर्ड खरीदी का लक्ष्य रखे हुए था, लेकिन किसानों को अभी भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अधिकारियों द्वारा रिश्वत की मांग और खराब गुणवत्ता का हवाला देकर सोयाबीन को नकारने की घटनाओं ने किसानों को निराश कर दिया है। जानकारी के मुताबिक, लगभग 400 रुपये प्रति बोरे की रिश्वत की मांग की जा रही है, जिसके चलते किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।मध्यप्रदेश के सोयाबीन किसानों को सरकार द्वारा की जा रही खरीद प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी मेहनत की कमाई पर सीधा असर पड़ रहा है। हालांकि, मुख्यमंत्री द्वारा भुगतान की प्रक्रिया को आसान बनाने का आश्वासन दिया गया है, लेकिन किसानों को अभी भी सच्ची मदद की जरूरत है, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो सके और वे अपनी फसल को उचित मूल्य पर बेच सकें।
नेफेड सर्वेयर की मनमानी से खरीदी की धीमी गति
नेफेड के सर्वेयर द्वारा किये जा रहे इन आरोपों के कारण सोयाबीन खरीदी की गति अत्यधिक धीमी हो गई है। किसानों को उनकी फसल बेचने में मुश्किलें आ रही हैं, क्योंकि कई बार ट्रालियों को गुणवत्ता में कमी के नाम पर वापस कर दिया जा रहा है। इसके अलावा, रिश्वत की मांग भी किसानों के लिए भारी पड़ रही है, जिससे MSP पर खरीदी का कार्य अवरुद्ध हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किया भ्रष्टाचार का विरोध
इस मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने सोयाबीन किसानों के प्रति हो रही धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की कड़ी निंदा की है। कमलनाथ ने आरोप लगाया कि किसानों से 400 रुपये प्रति बोरा रिश्वत लेकर सरकारी खरीदी में बाधाएं उत्पन्न की जा रही हैं, जो किसानों के साथ अन्याय है।
सोयाबीन की खरीदी पर मुख्यमंत्री के निर्देश
इस बीच, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निर्देश दिए हैं कि किसानों को सोयाबीन की खरीदी में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, और राशि का भुगतान आसानी से किया जाए। सरकार के मुताबिक, ई-उपार्जन पोर्टल के माध्यम से किसानों को ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था की गई है और अब तक लगभग दो लाख किसानों को 1957.1 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है।
वास्तविक स्थिति और सरकारी आंकड़ों में फर्क
हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में भुगतान की स्थिति में सुधार देखा जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। किसानों का कहना है कि सरकारी आंकड़े और उनकी वास्तविक स्थिति में बड़ा फर्क है। कई जिलों में किसानों को अभी भी भुगतान नहीं मिला है और उन्हें सोयाबीन की सही तौल और गुणवत्ता की वजह से परेशानी हो रही है।