बंपर पैदावार और ज्यादा मुनाफे के लिए सरसों की ये उन्नत किस्में अपनाएं – जानें फायदे और सही खेती के तरीके!

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भारत में सरसों एक प्रमुख तिलहनी फसल है, जो विभिन्न प्रकार के तेल, मसाले और पशु आहार के रूप में उपयोग होती है। सरसों की खेती में अधिक पैदावार के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना आवश्यक है। अच्छी पैदावार देने वाली किस्मों के चयन से न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि किसानों को अधिक लाभ भी प्राप्त होता है। आइए, जानते हैं सरसों की कुछ उन्नत किस्मों और उनके लाभ के बारे में।

सरसों की उच्च पैदावार देने वाली किस्में

  1. वरुणा (Varuna)
    यह एक बहुत ही लोकप्रिय और अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। वरुणा किस्म में तेल की मात्रा लगभग 40% होती है, और यह किस्म लगभग 125-135 दिनों में तैयार होती है। इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल तक हो सकता है।
  2. पूसा बोल्ड (Pusa Bold)
    पूसा बोल्ड सरसों की एक उन्नत किस्म है, जो रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है। इस किस्म में लगभग 42% तेल की मात्रा होती है, और इसका उत्पादन 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है।
  3. रचना (Rohini)
    यह किस्म शुष्क जलवायु और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अधिक उपयुक्त होती है। इसकी तेल की मात्रा लगभग 41% होती है और यह लगभग 130 दिनों में फसल तैयार करती है। प्रति हेक्टेयर 15-18 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है।
  4. आर. एच. – 30 (RH – 30)
    यह एक हाईब्रिड किस्म है जो जल्दी तैयार होती है। इसकी तेल की मात्रा 40-42% होती है और यह प्रति हेक्टेयर 18-20 क्विंटल तक उत्पादन देने की क्षमता रखती है। यह किस्म पत्तियों और फफूंद जनित रोगों से भी सुरक्षित रहती है।
  5. गिरिराज (Giriraj)
    गिरिराज किस्म विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए है जहां मिट्टी में नमी कम होती है। इसकी तेल की मात्रा लगभग 42% है और प्रति हेक्टेयर 16-18 क्विंटल तक का उत्पादन देती है।

इन किस्मों के लाभ

  1. उच्च पैदावार
    उन्नत किस्मों के चयन से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि होती है। अधिक पैदावार के कारण किसानों को अधिक आय प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  2. तेल की उच्च मात्रा
    इन किस्मों में तेल की मात्रा लगभग 40-42% तक होती है, जिससे किसानों को तेल उत्पादन के लिए अधिक लाभ प्राप्त होता है। बेहतर तेल मात्रा होने से बाजार में मांग भी अधिक रहती है।
  3. रोग-प्रतिरोधक क्षमता
    ये उन्नत किस्में फफूंद और कीटजनित रोगों से सुरक्षित रहती हैं, जिससे फसल पर कीटनाशकों की निर्भरता कम होती है। रोग-प्रतिरोधक किस्में फसल की गुणवत्ता बनाए रखने में भी सहायक होती हैं।
  4. कम समय में तैयार होने वाली किस्में
    जल्दी तैयार होने वाली किस्में किसानों को अतिरिक्त फसल लेने का मौका देती हैं, जिससे भूमि का अधिकतम उपयोग होता है। जैसे- RH-30 किस्म कम समय में तैयार हो जाती है और इसके बाद किसान अन्य रबी फसलें भी उगा सकते हैं।
  5. विभिन्न जलवायु में उपयुक्तता
    इन उन्नत किस्मों में कुछ किस्में कम वर्षा और सूखे वाले क्षेत्रों में भी अच्छी पैदावार देती हैं, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसान भी सरसों की खेती से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  6. मिट्टी की उर्वरता में सुधार
    सरसों की जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन को स्थिर करती हैं, जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है। इसके बाद खेती की गई फसलें भी बेहतर परिणाम देती हैं।

सरसों की खेती में अतिरिक्त सुझाव

  1. उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन
    सरसों की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की जरूरत होती है। नाइट्रोजन की संतुलित मात्रा से पैदावार में वृद्धि होती है।
  2. समय पर सिंचाई
    सरसों की फसल को तीन प्रमुख चरणों में सिंचाई की जरूरत होती है – बुवाई के बाद, फूल आने पर और कंद बनने के समय। इन चरणों पर ध्यान देने से फसल की वृद्धि में सुधार होता है।
  3. समय पर कटाई
    फसल के पकने पर तुरंत कटाई करना जरूरी है, ताकि उत्पादन में कोई कमी न आए। कटाई में देरी से कंद सूख सकते हैं और उत्पादन पर असर पड़ सकता है।

सरसों की उन्नत किस्में न केवल अधिक पैदावार देती हैं, बल्कि इनमें तेल की मात्रा भी अधिक होती है और ये रोगों से सुरक्षित रहती हैं। किसानों को अपनी आवश्यकता और स्थानीय जलवायु के अनुसार उपयुक्त किस्मों का चयन करना चाहिए। उन्नत किस्मों के साथ सही खेती के तरीकों को अपनाकर सरसों की खेती से अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

डिस्क्लेमर:
यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है। कृपया खेती से पहले अपनी स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें।

KisanHelps.in

"मैं एक किसान हूँ और पिछले 5 वर्षों से किसानों के लिए उपयोगी जानकारी साझा करने का काम कर रहा हूँ। मंडियों के ताजा भाव, सरकारी योजनाओं की जानकारी और खेती से जुड़ी नई तकनीकों को सरल भाषा में किसानों तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ, ताकि वे जागरूक और आत्मनिर्भर बन सकें।"

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