जानिए, पूसा बासमती की अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्में
भारत के कई राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ही लाखों किसान धान की बुवाई करते हैं। इस दौरान अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्मों के बीजों का चयन बेहद जरूरी होता है। ऐसी कई बासमती किस्में हैं जो बेहतरीन उत्पादन देती हैं, लेकिन पूसा बासमती की तीन खास किस्में – पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 – किसानों के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो रही हैं। इन किस्मों की खेती से किसान प्रति एकड़ 4,000 रुपए तक की अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही इनकी सीधी बुवाई तकनीक अपनाकर 35 से 40 प्रतिशत तक पानी की बचत भी संभव है।
ये हैं धान की खास उन्नत किस्में
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा द्वारा विकसित पूसा बासमती 1121, 1979 और 1985 ऐसी उन्नत किस्में हैं जो कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं। इन किस्मों की सफल खेती के लिए किसानों को सीधी बुवाई तकनीक अपनाने की सलाह दी जाती है। इन किस्मों से न केवल उत्पादन अधिक होता है, बल्कि बाजार में भी इनके चावलों को अच्छी कीमत मिलती है।
पूसा बासमती 1121 की खासियत
- यह किस्म अर्ध-बौनी होती है, जिसकी पौधों की ऊंचाई 110 से 120 सेमी तक होती है।
- इसे 2003 में ‘पूसा 1121’ और 2008 में ‘पूसा बासमती 1121’ के रूप में अधिसूचित किया गया।
- यह किस्म खासतौर पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के लिए उपयुक्त है।
- इसके चावल लंबे, पतले और सुगंधित होते हैं।
- यह किस्म 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी उपज क्षमता लगभग 4.5 टन प्रति हेक्टेयर है।
पूसा बासमती 1979 की खासियत
- इस किस्म को पूसा बासमती 1121 को उन्नत करके तैयार किया गया है।
- यह किस्म लगभग 130-133 दिन में तैयार होती है।
- यह किस्म इमाजेथापियर 10% SL हर्बिसाइड के प्रति सहनशील है।
- सिंचित क्षेत्रों में इसकी औसत उपज 45.77 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।
पूसा बासमती 1985 की खासियत
- यह किस्म पूसा बासमती 1509 को सुधारकर विकसित की गई है।
- यह किस्म भी हर्बिसाइड इमाजेथापियर 10% SL के प्रति सहनशील है।
- 115 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
- इसकी औसत उपज 22 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
इन किस्मों की बुवाई कैसे करें?
इन उन्नत किस्मों की खेती के लिए सीधी बुवाई तकनीक अपनाना फायदेमंद है। सीधी बुवाई की दो विधियां प्रमुख हैं – तरबतर बुवाई और सूखी बुवाई।
तरबतर विधि
- गेहूं की कटाई के बाद खेत को जोतकर उसमें पानी दिया जाता है और तीन दिन तक छोड़ दिया जाता है।
- फिर समतल करके बीजों की बुवाई की जाती है।
- बुवाई के 20 दिन बाद खरपतवार नाशक का छिड़काव करके फसल को सुरक्षित रखा जाता है।
सूखी विधि
- गेहूं काटने के तुरंत बाद बीजों की बुवाई कर दी जाती है।
- 15 से 20 दिन बाद सिंचाई करके 48 घंटे के भीतर दवा का छिड़काव किया जाता है।
- इससे खरपतवार पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं और फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।