जानिए , आलू की खेती में उत्पादन बढ़ाने के तरीके
आलू की मांग बाजार में सालभर बनी रहती है। इसे हर सब्जी के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। आलू से अनेक प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं, और इसका उपयोग अन्य सभी सब्जियों की तुलना में ज्यादा होता है। इस कारण आलू की खेती (Potato Farming) किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। कई किसान आलू की फसल को प्राथमिकता देते हुए इसे अन्य सब्जियों के साथ उगाकर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं।
यदि आलू की कीमतों की बात करें, तो मौजूदा समय में बाजार में आलू के अच्छे दाम मिल रहे हैं। त्योहारी और शादी के सीजन में इसकी मांग बढ़ने से भाव भी बेहतर हो जाते हैं। ऐसे में किसानों के लिए आलू की खेती एक फायदे का सौदा बन रही है।
अगर आप किसान हैं और आलू की खेती कर रहे हैं या करना चाहते हैं, तो बेहतर पैदावार के लिए खेती के दौरान कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।आइए , आलू की खेती से संबंधित 5 जरूरी उपाय के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
बुवाई के लिए चुनें स्वस्थ और प्रमाणित बीज
आलू की बुवाई के लिए किसानों को हमेशा रोगमुक्त और प्रमाणिक बीजों का चयन करना चाहिए। आलू की बुवाई के लिए उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों के बीजों का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि ये बीज रोगों से सुरक्षित होते हैं और बेहतर उत्पादन देते हैं। प्रमाणित बीज आप सरकारी संस्थान या लाइसेंस प्राप्त दुकानों से खरीद सकते हैं। इसके साथ ही, बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना भी फसल के लिए लाभकारी रहता है।
मिट्टी की जांच करवाकर दूर करें पोषक तत्वों की कमी
आलू की खेती लगभग हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन अच्छे जल निकास वाली हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। खेत में पोषक तत्वों की कमी का पता लगाने के लिए मिट्टी की जांच अवश्य करानी चाहिए। जांच के आधार पर जो पोषक तत्व भूमि में कम हों, उनका उपचार करें। किसान सॉयल हेल्थ कार्ड बनवाकर अपने खेत की मिट्टी की स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
खाद एवं उर्वरकों का सही तरीके से करें प्रयोग
बुवाई से पहले खेत की अच्छी जुताई करें और 15-20 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल करें। इसके अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का उचित मात्रा में छिड़काव करें। ये तत्व आलू के पौधों के बेहतर विकास के लिए आवश्यक हैं। नाइट्रोजन पौधों की पत्तियों और तनों के विकास में सहायक होता है, फास्फोरस जड़ों को मजबूत करता है, और पोटाश कंदों की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है।
सिंचाई का रखें विशेष ध्यान
आलू की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए सिंचाई का सही समय पर होना बेहद जरूरी है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें और कंदों के विकास के दौरान मिट्टी की नमी बनाए रखें। बुवाई के 30-45 दिन बाद सिंचाई को कम कर दें, क्योंकि इस समय कंद आकार लेना शुरू करते हैं और अधिक पानी से सड़ने का खतरा रहता है। ड्रिप इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल करके आप पानी की बर्बादी रोक सकते हैं और फसल को आवश्यक नमी भी प्रदान कर सकते हैं।
कीटों और रोगों से फसल का बचाव करें
आलू की बुवाई के बाद शुरुआती 30-45 दिन फसल के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान पौधों को पोषण और पानी के साथ-साथ कीट व रोगों से बचाने की भी आवश्यकता होती है।किसान भाई फसल की नियमित निगरानी करें और समस्या बढ़ने से पहले ही उचित उपाय अपनाएं। अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क कर सकते हैं।