खरीफ प्याज की बुवाई से संबंधित जानकारी
खरीफ के सीजन में किसान भाई खरीफ फसलों की बुवाई करते हैं। खरीफ फसलों में प्याज की फसल काफी अच्छा लाभ दे सकती है। प्याज एक ऐसी फसल है जिसका विक्रय सीधे किया जा सकता है और किसान भाई इससे अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। खरीफ प्याज की फसल अक्टूबर से नवंबर के माह में तैयार हो जाती है और इस समय खरीफ प्याज की मांग के अनुरूप कीमत भी अधिक मिल जाती है। खरीफ प्याज की पैदावार में वृद्धि के लिए भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें एकीकृत बागवानी विकास मिशन (इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर)(MIDH) खरीफ प्याज की उपज में वृद्धि के लिए कार्यरत हैं। खरीफ प्याज के लिए कीमत प्रति किलो 40 से ₹50 तक हो जाती है। यही कारण है कि खरीफ प्याज से किसान भाई काफी अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आइए, खरीफ प्याज की खेती से संबंधित जानकारी पर प्राप्त करें।
प्याज की उन्नत किस्म
राष्ट्रीय बागवनी अनुसंधान और अनुसंधान विकास प्रतिष्ठान नई दिल्ली के निर्देशक डॉक्टर PK गुप्ता के अनुसार प्याज की एग्री फाउंड डार्क रेड एक ऐसी किस्म है जो बेहतर उत्पादन देती है। इसके पकने की अवधि लगभग 80 से 100 दिन है। इसके अतिरिक्त NHRDF की एक किस्म लाइन 883 है। इसके पकने की अवधि 75 दिन है।
खरीफ प्याज की अन्य उन्नत किस्में
खरीफ प्याज की बुवाई के लिए अन्य उन्नत किस्में इस प्रकार हैं जैसे – पूसा रतनार, पूसा रेड, पूसा व्हाइट फ्लैट, पूसा व्हाइट राउंड और एग्रीफाउंड लाइट रेड आदि।
खरीफ प्याज हेतु पांच राज्यों के लिए प्रोजेक्ट
भारत सरकार द्वारा खरीफ प्याज की पैदावार में वृद्धि के लिए मिशन एकीकृत बागवानी विकास मिशन (इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर)(MIDH) कार्यरत है। प्याज की उपज में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशेष कार्य किए जा रहे हैं और इसी कारण मिशन की शुरुआत की गई। इसके अतिरिक्त खरीफ प्याज के लिए पांच राज्यों हेतु खास प्रोजेक्ट दिए गए हैं। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्य सम्मिलित हैं।
हरियाणा के किसानों को खरीफ प्याज की खेती से दोगुना लाभ
हमारे देश में खरीफ प्याज की खेती कई राज्यों में की जाती है। राज्य सरकार द्वारा एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) के तहत खरीफ प्याज की खेती करने वाले किसान भाइयों को अनुदान राशि प्रदान की जाएगी जो सीधे उनके बैंक खाते में जाएगी। किसान भाइयों को अधिकतम 5 एकड़ भूमि तक इस योजना का लाभ प्राप्त हो सकेगा। जो किसान भाई हरियाणा के हैं और उनके द्वारा खरीफ प्याज की खेती की जा रही है तो उन्हें खरीफ प्याज की खेती से दोगुना लाभ होगा। पहला फायदा फसल से प्राप्त लाभ पर होगा और दूसरा फायदा राज्य सरकार से प्रति एकड़ 8000 रुपए भी प्राप्त होंगे।
खरीफ प्याज की खेती से संबंधित किसानों के लिए सलाह
राष्ट्रीय बागवनी अनुसंधान और अनुसंधान विकास प्रतिष्ठान नई दिल्ली के निर्देशक डॉक्टर PK गुप्ता के अनुसार खरीफ प्याज की खेती से संबंधित किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि खरीफ प्याज के लिए नर्सरी तैयार करते समय कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें। खरीफ प्याज की खेती में दिन के समय तापमान अधिक रहता है और मानसून के कारण अचानक बारिश होने से तापमान में गिरावट आ जाती हैं। इस कारण नर्सरी को हानि पहुंचाने की संभावना रहती है। किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि नर्सरी तैयार करने से पूर्व खेत को अच्छी तरह तैयार करें जिससे प्रतिकूल स्थिति होने पर भी पौधे सामना करने में सक्षम हो। किसान को सरकारी संस्थान और अच्छी कंपनियों का बीज खरीदना चाहिए। खरीफ प्याज की खेती में स्वच्छ और प्रामाणिक बीजों का चयन करें। बीज महंगा हो सकता है किंतु आगे नुकसान का सामना न करना पड़े इसलिए खरीफ प्याज की खेती में कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। खरीफ प्याज की खेती में एग्री फाउंड डार्क रेड किस्म का चयन करके नर्सरी तैयार करने के लिए बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर 7 से 8 किग्रा होना चाहिए। इसके अतिरिक्त किसान भाई पूसा रेड, भीमा रेड और लाइन-883 किस्म के बीजों का भी चयन कर सकते हैं।
खरीफ प्याज की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें
(1) प्याज की खेती सामान्य रूप से सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है किंतु उचित जल निकासी और जीवांश खाद की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी अधिक अम्लीय और अधिक क्षारीय नहीं होनी चाहिए, नहीं तो कंद विकास अच्छे से नहीं हो पाता है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी दोमट मिट्टी होती है। प्याज की फसल के लिए जलवायु की बात करें तो जलवायु ना बहुत ठंडी हो और ना बहुत गर्म।
(2) प्याज की फसल में अच्छे कंद निर्माण के लिए बड़े दिन और कुछ अधिक तापमान का होना उचित होता है।
(3) प्याज की खेती में यदि मिट्टी में गंधक की कमी हो तब खेत की अंतिम जुताई के समय बुवाई के लगभग 15 दिन पूर्व मिट्टी में प्रति हेक्टेयर जिप्सम की 400 किग्रा मात्रा मिला देना चाहिए। प्याज की खेती में खाद एवं उर्वरकों के रूप में खेत तैयार करते समय मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद की 400 क्विंटल मात्रा मिला देना चाहिए।
(4) प्याज की खेती में उर्वरकों के रूप में पोटाश की 100 किग्रा मात्रा, नत्रजन की 100 किग्रा मात्रा और फास्फोरस की 50 किग्रा मात्रा का प्रयोग करें। फास्फोरस और पोटाश की पूर्ण मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा रोपण से पहले खेत तैयार करते समय प्रयोग करें। नत्रजन की शेष आधी मात्रा रोपण के एक से डेढ़ माह पश्चात् खड़ी फसल में प्रयोग करें।
(5) खरीफ प्याज की खेती के लिए उपयुक्त समय जुलाई के आखिरी सप्ताह से अगस्त माह तक होता है।
(6) प्याज की खेती में कंद की मात्रा बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल होना चाहिए।
(7) प्याज की खेती में कंद की बुवाई के लिए 5 से 2 सेमी व्यास के आकार वाले कंद का ही चयन करें।
(8) प्याज की खेती में कंद की बुवाई के लिए दूरी की बात करें तो मेड़ों की दूरी 45 सेमी और कंद की बुवाई की आपसी दूरी 10 सेमी होना चाहिए।
(9) प्याज की खेती में बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 8 से 10 किग्रा होनी चाहिए। कंद और पौधे तैयार करने के लिए बीजों को क्यारियों में बोना चाहिए।
(10) प्याज की फसल को आर्द्र गलन रोग से बचाव के लिए बीजों को उपचारित करना चाहिए। इसके लिए प्रति किग्रा बीज में ट्राइकोडर्मा विरिडी की 4 ग्राम मात्रा या थिरम की 2 ग्राम मात्रा से बीजों को उपचारित करना चाहिए।
(11) प्याज की खेती में बारिश में जल निकासी की उचित व्यवस्था हो इसलिए क्यारियों की ऊंचाई लगभग 10 से 15 सेमी रखना चाहिए।
(12) प्याज की खेती में बुवाई से पहले क्यारियों की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए।
(13) प्याज की खेती में नर्सरी से खरपतवार को नष्ट करने तथा दवा का प्रयोग करने के लिए दूरी का ध्यान रखें। बीजों की बुवाई 5 से 7 सेमी की दूरी पर होनी चाहिए तथा 2 से 3 सेमी गहराई पर होनी चाहिए।
(14) प्याज की खेती में बीजों की बुवाई के पश्चात् खाद, भुरभुरी मिट्टी और घास से ढक देना चाहिए और हल्की सिंचाई करें। अंकुरण होने के पश्चात् घास को हटा देना चाहिए। पौधे लगभग 7 से 8 सप्ताह पश्चात् रोपण योग्य हो जाते हैं।
(15) प्याज की खेती में रोपण के लिए दूरी की बात करें तो कतारों की आपसी दूरी 15 सेंमी और पौधों के आपसी दूरी 10 सेमी होनी चाहिए।
(16) प्याज की खेती में बुवाई और रोपण के समय और उसके तीन से चार दिन पश्चात् हल्की सिंचाई अवश्य करना चाहिए जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है। फसल में 8 से 12 दिन के अंतराल में आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
(17) प्याज की खेती में फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष भाग पीले होकर गिरने लग जाते हैं तब सिंचाई बंद कर देना चाहिए।
(18) प्याज की खेती में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए रसायन के रूप में बुवाई से पूर्व फ्लूक्लोरेलिन की 1.5 से 2 किग्रा मात्रा मिट्टी में मिला दें और अंकुरण से पूर्व प्रति हेक्टेयर एलाक्लोर की लगभग 1.5 से 2 किग्रा मात्रा का छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त प्याज की फसल में 45 दिन के पश्चात् निराई-गुड़ाई करना चाहिए।