धान में बौनेपन की समस्या : धान में बौनेपन की रोकथाम के लिए किसान भाई अपनाए ये जरूरी टिप्स

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जानिए, धान की फसल में क्यों आता है बौनेपन का संकट और क्या है इसका समाधान

धान खरीफ सीजन की सबसे अहम फसलों में से एक है, जिसकी खेती भारत के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है। वर्तमान समय में किसान धान की नर्सरी तैयार करने में जुटे हुए हैं ताकि बारिश शुरू होते ही बुवाई की जा सके। इसी बीच धान की नर्सरी में एक वायरस का प्रकोप देखने को मिल रहा है, जो स्पाइनारियोविरिडे समूह से संबंधित है। इस वायरस की वजह से पौधे सामान्य ऊंचाई तक नहीं बढ़ पाते और बौने रह जाते हैं, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधों का रंग अधिक हरा दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में कृषि वैज्ञानिकों ने इसके समाधान के लिए कुछ अहम सुझाव दिए हैं, जो किसानों के लिए लाभकारी हो सकते हैं।

कैसे पहचानें कि धान की फसल में बौनेपन की समस्या है?

यदि धान की बुवाई के शुरुआती चरण में ही उसकी पत्तियां पीली पड़ने लगें, तो यह बौनेपन का संकेत हो सकता है। यह समस्या अक्सर खरपतवारों की अधिकता या पोषक तत्वों की कमी के कारण उत्पन्न होती है। समय रहते पहचान और सही उपाय बेहद जरूरी हैं।

धान में बौनेपन की समस्या से बचाव के लिए अपनाएं ये उपाय

कृषि विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं:

  • अगेती नर्सरी की नियमित निगरानी करें और किसी भी असामान्य लक्षण को अनदेखा न करें।
  • बीमार पौधों को खेत से हटाकर नष्ट करें, और उन्हें खेत से दूर मिट्टी में दबा दें।
  • सीधी बुवाई को प्रोत्साहित करें, जिससे वायरस के फैलाव की संभावना कम हो जाती है।
  • निराई-गुड़ाई समय-समय पर करते रहें ताकि खरपतवार न पनपें और पौधों को सही पोषण मिलता रहे।
  • यदि कुछ पौधों में ही पीलेपन के लक्षण दिखें तो उन्हें निकालकर उनकी जगह स्वस्थ पौधे लगा दें।
  • आवश्यकता अनुसार यूरिया, डीएपी और जीवामृत का छिड़काव करें ताकि पौधों को जरूरी पोषण मिल सके।
  • अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से बचें, क्योंकि यह पौधों को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • नर्सरी को हॉपर्स से बचाने के लिए डिनोटफ्यूरान 20 एसजी (80 ग्राम/एकड़) या पाइमेट्रोजिन 50 डब्ल्यूजी (120 ग्राम/एकड़) का छिड़काव करें।

धान की सीधी बुवाई: कम लागत में ज्यादा मुनाफा

कृषि वैज्ञानिक सीधी बुवाई तकनीक को अपनाने की सलाह दे रहे हैं। इस तकनीक से लागत में कमी आती है, पैदावार बेहतर होती है और कीट-रोगों का खतरा भी कम होता है। इसमें नर्सरी की जरूरत नहीं होती, बल्कि बीजों की सीधी खेत में बुवाई की जाती है, जिससे पानी की भी काफी बचत होती है। वहीं परंपरागत रोपाई विधि में नर्सरी तैयार कर 20-25 दिन बाद रोपण किया जाता है, जिसमें ज्यादा श्रम और पानी की आवश्यकता होती है।

2022 में हुआ था इस वायरस का पहली बार पता

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2022 में पहली बार इस वायरस का पता लगाया था, जब राज्य के कई इलाकों में धान की फसल में बौनेपन की समस्या देखी गई थी। यह बीमारी लगभग सभी किस्मों को प्रभावित कर रही थी। इसके बाद वैज्ञानिकों ने प्रभावित पौधों के नमूने एकत्र कर गहराई से जांच की और बौनेपन के पीछे के कारणों की खोज शुरू की।

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