धान की फसल में इस माह क्यों करें यह कार्य?
खरीफ के सीजन में धान एक मुख्य रूप से बोई जाने वाली फसल है। इसके फलस्वरुप कई राज्यों के किसानों ने धान की रोपाई की है और अब इस समय धान की फसल की इस अवस्था में मुख्य रूप से देखरेख की जरूरत होती है। यदि धान की फसल में इस समय सही ढंग से ध्यान ना दिया जाए तो इससे फसल प्रभावित होगी। यदि वही उचित रूप से देखरेख की जाए तब अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यही वह समय है जब धान में खरपतवार होती है और कई तरह के कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे पैदावार प्रभावित होती है। ऐसे में धान की फसल को सितंबर के माह में मुख्य रूप से देखरेख की आवश्यकता होती है और इस माह में धान में कुछ विशेष कार्य करके फसल की गुणवत्ता में भी वृद्धि की जा सकती हैं। धान की फसल के बढ़वार के समय उचित रूप से देखरेख करने पर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। धान की फसल में कुछ उपाय को अपना कर किसान भाई काफी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। आइए, धान की विशेष देखरेख से संबंधित और पैदावार में सहायक तथ्यों के बारे में जानेंगे।
धान की फसल में इस माह के 4 कार्य
धान का बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए सितंबर के माह में किसान भाई इन कार्यों को करें जो इस प्रकार है:
- पाटा चलाना:
धान की फसल जब 20 दिन की हो जाए तब खेत में पाटा चलाएं जिससे कि पैदावार में वृद्धि होगी। पाटा चलाते समय यह ध्यान रखें की खेत में पानी होना चाहिए। - नाइट्रोजन की दूसरी मात्रा का प्रयोग:
धान की फ़सल में यदि उन्नतशील प्रजाति की रोपाई की गई हो तब नाइट्रोजन की दूसरी मात्रा 50 से 55 दिन पश्चात् जब फसल में बालियां बनने लगे तब प्रति हेक्टेयर में लगभग नाइट्रोजन की 30 किलोग्राम मात्रा का प्रयोग करें। धान की सुगंधित किस्म के नाइट्रोजन की प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम मात्रा का प्रयोग करें।
यदि तीसरी नाइट्रोजन की मात्रा नहीं दी हो तो इस माह शाम के समय तीन से चार बोरी यूरिया खेत में डाल दें। - जल प्रबंधन की सही व्यवस्था:
किसान भाई धान की फसल में जल प्रबंधन की सही व्यवस्था रखें जिससे की खेत में अधिक मात्रा में पानी स्थिर ना हो। इसके लिए यह ध्यान रखें की खेत में अधिक पानी न हो और धान की फसल के लिए आवश्यक पानी खेत में रहे जिससे की भूमि नम रहे। इसके लिए किसान भाई खेत में 2 इंच से अधिक गहरा पानी न रखें। जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें। - सिंचाई की उचित व्यवस्था:
धान की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। धान के खेत में एक सिंचाई से दूसरे सिंचाई के बीच नियत अंतराल होना चाहिए। प्रथम सिंचाई होने के पश्चात 2 से 3 दिन बाद खेत का पानी सूखने पर दूसरी सिंचाई करें। धान की फसल में जब बालियां और फूल आने लगे उस समय खेत नम होना जरूरी है इसलिए आवश्यकता होने पर अवश्य सिंचाई करें।
धान की फसल में रोगों से बचाव के उपाय
- ब्लास्ट रोग से बचाव:
धान की फसल में सितंबर के माह में कई कीटों का प्रकोप होता है, इसमें धान का ब्लास्ट रोग भी दिखाई देता है। इस रोग में फसल की बालियों में काले धब्बे बनने लगते हैं जिससे कि दाना नहीं बन पाता है। सही समय पर इस रोग पर नियंत्रण आवश्यक है।
उपाय:
धान के ब्लास्ट रोग के नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ में लगभग 200 लीटर पानी में कार्वेंडाजिम की 200 ग्राम मात्रा/वीम की 120 ग्राम मात्रा/हिप्नोसान को मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। - फाल्स स्मट रोग से बचाव:
धान की फसल के पकने की अवस्था में नश्वर जैसे दाने धान के दानों के साथ लग जाते हैं। इससे फसल की पैदावार पर बुरा असर होता है। इस रोग को फाल्स स्मट रोग कहा जाता है।
उपाय:
धान के फाल्स स्मट रोग के नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ में 200 लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड/मैंन्कोजेब की 500 ग्राम मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। - झुलसा रोग से बचाव:
धान का झुलसा रोग एक जीवाणु जनित रोग है जो कि पत्तियों से फैलता है। इस रोग के अधिक प्रकोप से पौधे की पूरी पत्ती सुख जाती है जिससे फसल को काफी नुकसान होता है।
उपाय:
इस रोग से बचने के लिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। फसल पर नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग कम करें और कीटनाशकों का प्रयोग करें।
प्रस्तावित कीटनाशक:
प्रति हैक्टेयर में 500 से 600 लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 500 ग्राम मात्रा और एग्रीमाइसीन-100 ग्राम की 74 ग्राम के घोल का 3 से 4 बार छिड़काव करें। - भूरा धब्बा रोग से बचाव:
धान की फसल में भूरा धब्बा नामक रोग भी हो जाता है।
उपाय:
इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति हैक्टेयर में लगभग 800 लीटर पानी में जिंक मैग्जीन कार्बोनेट 75% की 2 किलोग्राम मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। - गंधीबग कीट से बचाव:
गंधीबग कीट से धान की फसल बुरी तरीके से प्रभावित होती है। इस कीट के प्रकोप से धान के खेत से दुर्गंध आने लगती है।
उपाय:
इस कीट से बचने के लिए प्रति हैक्टेयर में लगभग प्रति लीटर पानी में एफीसेट 75 SP की 1 से 5 ग्राम मात्रा/क्यूनालफॉस 25 E.C. की 2 मिली मात्रा/मैलाथियान धूल 5 D की 1 से 5 ग्राम मात्रा/DDVP 76 E.C. की 1.5 मिली मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।