धान की खेती में युरिया बचाने का तरीका जानिए : उपयोग करें इस जैविक उर्वरक का और पाए भरपुर उत्पादन

By
On:
Follow Us

धान की खेती में उत्पादन कैसे बढ़ाएं?

हमारे देश में कई प्रकार की खेती की जाती है जिसके लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है। हमारे देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की खेती पर ध्यान दिया जा रहा है यही एक और नई नई टेक्नोलॉजी पर सरकार जोर दे रही है वहीं दूसरी ओर खेती में खर्चे को कम करने हेतु किसानों को प्रेरित कर रही है। किसानों को विभिन्न प्रकार से जानकारी देकर और तकनीकी रूप से प्रशिक्षित कर खेती में कम खर्च में ज्यादा पैदावार प्राप्त करने के तरीके ढूंढ जा सकते हैं। वर्तमान में खेती में उपयोग होने वाले तकनीकी साधन के साथ उर्वरक आदि खेती से संबंधित साधनों की लागत भी बढ़ गई है यह देखते हुए खेती में लागत को कम किया जाए और उत्पादन अधिक हो जिससे किसानों को अधिक से अधिक मुनाफा मिले इस और भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए उसी के संबंध में किसान भाइयों द्वारा रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाना एक उचित उपाय है जिससे यूरिया की मात्रा का कम उपयोग कर खेती में होने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है स्वास्थ्य वर्धक फसल प्राप्त की जा सकती है आइए जैविक खाद के बारे में जानिए। यह जैविक खाद नील हरित शैवाल है। किसान भाई यूरिया पर काफी हद तक खर्चा कर देते हैं जिससे खेती में लागत भी बढ़ती है इसलिए नील हरित शैवाल जैसी जैविक खाद का उपयोग कर अधिक लागत को कम लागत में परिवर्तित किया जा सके। नील हरित शैवाल जैसी जैविक खाद से खेतों में नाइट्रोजन की कमी पूरी की जा सकती है और धान की खेती में कम लागत में उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है। आइए, नील हरित शैवाल के बारे में जानिए।

नील हरित शैवाल क्या है?

नील हरित शैवाल एक प्रकार का जीवाणु है जो पौधों के ही समान प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करता है और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा ही जीवित रहता है। नील हरित शैवाल को साइनोबैक्टीरिया भी कहते हैं। नील हरित शैवाल खेतों में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करता हैं। नील हरित शैवाल द्वारा वायुमंडल से नाइट्रोजन की यौगिकीकरण कर पाने की वजह से किसान द्वारा इसका उपयोग फसलों में किया जाता है। हरित शैवाल नाइट्रोजन योगीकरण की क्रिया द्वारा खेतों में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करता है और नाइट्रोजन प्रदान कर यूरिया की मात्रा खेतों में कम करता है जिससे किसान द्वारा उपयोग किए जाने वाले यूरिया कम मात्रा में प्रयुक्त होता है। धान की खेती में नील हरित शैवाल का मुख्य उपयोग होता है इसलिए धान की खेती में यूरिया की जगह नील हरित शैवाल का उपयोग करें।

नील हरित शैवाल बनाने की तकनीक

नील हरित शैवाल बनाने की तकनीक किसान भाईयों के लिए मददगार साबित हो सकती है। नील हरित शैवाल बनाने के लिए ध्यान रखने योग्य बातें इस प्रकार है–

  1. नील हरित शैवाल बनाने के लिए खुला स्थान चुनें जहां धूप पर्याप्त आती हो, उस स्थान पर गड्ढा बनाएं और गड्ढे के लिए लंबाई, चौड़ाई और गहराई क्रमशः 2 मीटर, 1 मीटर और 8 से 10 इंच रखें।
  2. गड्ढे में पॉलिथीन की सीट बिछा दें ताकि पानी मिट्टी के अंदर ना जाए और फिर गड्ढे में साफ पानी डालें फिर खेत से 3 से 4 किलो छनी हुई मिट्टी लेकर पानी में मिला दें।
  3. गड्ढे में पानी भरा होने के कारण उसमें मच्छर पनप न पाए इसलिए पानी में 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 5 मिलीग्राम मेलाथियान मिलाएं।
  4. इन सब प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद अगले दिन सुखराम नील हरित शैवाल छिड़ककर छोड़ दें, पानी की मात्रा कम होने पर और पानी देते रहें।
  5. अब बनाए हुए गड्ढे को 6 से 7 दिन पूर्ण होने के बाद नील हरित शैवाल की एक मोटी परत बनने लग जाती है।
  6. जब नील हरित शैवाल की मोटी परत बन जाती है तब पानी को सूखने दें और जब पानी सूख जाए तब शैवाल को पॉलिथीन में लें और यूरिया के रूप में खेत में इस बनी हुई खाद का उपयोग करें।
  7. एक बार नील हरित शैवाल की तैयारी करने के बाद में और उत्पादन के लिए गड्ढे में पानी दोबारा डाल दें और इसी प्रक्रिया द्वारा शैवाल का उत्पादन 6 से 7 बार लिया जा सकता है।

इस मात्रा में होगी यूरिया की बचत

धान की खेती में नील हरित शैवाल का उपयोग करने से यूरिया की बचत होती है। हरित शैवाल के उपयोग से यूरिया की बचत के साथ धान के उत्पादन में भी वृद्धि होती है। रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग करने से फसल में रसायन के गुण नहीं होते हैं और कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। आजकल स्वास्थ्य के लिए रसायन मुक्त खाद्य पदार्थों की मांग ज्यादा होने लगी है, जिसके कारण जैविक खाद खेती में ज्यादा इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसके फलस्वरूप जैविक खाद के प्रयोग से यूरिया की अच्छी बचत हो सकेगी। IRI के सूक्ष्म जीव वैज्ञानिक डॉक्टर सुनील पब्बी ने कहा है कि खेतों में यदि नील हरित शैवाल जीवाणु का उपयोग किया जाए तो यह प्रति हेक्टेयर 40 से 45 किलोग्राम यूरिया की बचत करेगा। यूरिया की बचत के साथ ही भूमि में सुधार होगा और मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होगी और जल अवरोधक क्षमता में भी वृद्धि होगी। इस प्रकार धान की पैदावार भी बढ़ेगी। किसानों द्वारा जैविक खाद के उपयोग से होने वाले चावल को बाजार में विक्रय करने पर अच्छी कीमत मिल जाएगी और लागत में कमी होने के साथ उत्पादन में वृद्धि होगी और अच्छा मुनाफा प्राप्त होगा।

धान की खेती में उत्पादन किस मात्रा में बढ़ेगा?

धान का उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया खाद के स्थान पर नील हरित शैवाल का इस्तेमाल करना एक अच्छा उपाय है। धान की पैदावार बढ़ाने में नील हरित शैवाल का एक बड़ा योगदान होता है। धान की खेती में जिन किसानों द्वारा जैविक खाद का उपयोग किया जाता है उनकी धान की अच्छी पैदावार होती है, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि होती है और इसी प्रकार किसान भाई 10 से 20% तक अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इन शैवाल को किसान खेत में ही बना सकते हैं। यदि यूरिया खाद के प्रयोग द्वारा धान की खेती में उत्पादन प्रति हेक्टेयर 60 क्विंटल तक होता है, उसी जगह पर नील हरित शैवाल के प्रयोग से धान की खेती में उत्पादन प्रति हेक्टेयर 65 से 70 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार जैविक खाद के प्रयोग से 5 से 10 क्विंटल धान की अधिक पैदावार होती है।

For Feedback - patidarpatidar338@gmail.com

Leave a Comment

WhatsApp Group Link