जानिए, धान की उन्नत 3 किस्में कौन सी हैं और कैसे होगा लाभ?
मानसून की बारिश के प्रारंभ होते ही खरीफ की फसलों की बुवाई प्रारंभ हो जाती है। धान खरीफ की फसलों के अंतर्गत आती है। बारिश के मौसम में अधिकांश जगह पर बाढ़ के हालात पैदा हो जाते हैं और कहीं पर सूखे की स्थिति रह जाती है जिससे किसानों का काफी नुकसान होता है। अभी अगर बाढ़ की बात करें तो हरियाणा में अधिक बारिश से बाढ़ की स्थिति बन गई और धान और अन्य फसल को काफी नुकसान हुआ है। इसे तो धान की फसल में पानी की आवश्यकता अधिक होती है लेकिन अधिक मात्रा में पानी धान की फसल को नुकसान पहुंचाता है। फसल अधिक बारिश के कारण पानी में बह जाती है और किसानों को फिर से धान की बुवाई करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में जहां बाढ़ की संभावना हो उनके लिए धान और अन्य चारा फसल के लिए संकट जैसी स्थिति बन जाती है। पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध नहीं हो पाता है वहां के किसान क्या करें जिससे ऐसी स्थिति ना बने कृषि वैज्ञानिकों ने धान की कुछ ऐसी किस्म को विकसित किया है जो बाढ़ की स्थिति में भी डूबती नहीं है और इन को नुकसान होने की संभावना भी कम होती है। चित्रों में बाढ़ आने की संभावना ज्यादा होती है वहां के किसानों के लिए धान की किस्में उपयोगी है और अधिकांश रूप से 30 इलाकों में इन किस्मों की खेती की जाती है। हमारे द्वारा धान की इन 3 किस्मों की जानकारी दी जा रही है जिससे बाढ़ आने पर भी फसल को नुकसान होने की संभावना कम होगी। बाढ़ में भी खराब ना होने वाली यह 3 किस्में इस प्रकार है-
(1) धान स्वर्णा सब-1 किस्म
धान की स्वर्णा सब-1 किस्म के विकास का श्रेय आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय को जाता है। धान की स्वर्णा सब-1 किस्म अर्ध बौनी किस्म है। धान की स्वर्णा सब-1 किस्म के दानों का आकार मध्यम पतला होता है।
धान की स्वर्णा सब-1 किस्म धान की एक बाढ़ प्रतिरोधी किस्म है। धान स्वर्णा सब-1 किस्म के पौधे 10 दिन जल में रहने के कारण पत्ते मुरझाए हुए दिखाई देते हैं किंतु 14 से 17 दिनों तक भी पानी में डूबे रहने पर भी खराब नहीं होते हैं। इस किस्म में सब-1 जीन मौजूद होने के कारण यह बाढ़ ग्रस्त और तराई क्षेत्रों में उपयोगी साबित हुई हैं।
धान की स्वर्णा सब-1 किस्म से हैड राइस लगभग 66.5% तक प्राप्त होता है।
धान की स्वर्णा सब-1 किस्म की पैदावार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लगभग प्रति हेक्टेयर 1 से 2 टन है।
धान की स्वर्णा सब-1 किस्म सीधी बुवाई करने पर इसके पकने की अवधि लगभग 140 दिन है और यदि पौधों की रोपाई की गई हो तब पकने की अवधि लगभग 145 दिन है।
(2) धान सह्याद्रि पंचमुखी किस्म
धान की सह्याद्रि पंचमुखी किस्म के विकास का आंचलिक कृषि एवं बागवानी अनुसंधान स्टेशन (Zonal Agriculture and Horticulture Research Center) को जाता है। वर्ष 2019 में इस किस्म का विकास किया गया था।
धान की सह्याद्रि पंचमुखी किस्म लाल चावल की एक सुगंधित किस्म है यह किस्म स्वाद में उत्तम और सुगंधित होती है।
धान की सह्याद्रि पंचमुखी किस्म धान की एक बाढ़ प्रतिरोधी किस्म है।
धान सह्याद्रि पंचमुखी किस्म के पौधे 8 से 10 दिनों तक भी पानी में डूबे रहने पर भी खराब नहीं होते हैं।
यह किस्म बाढ़ ग्रस्त और तटीय क्षेत्रों में उपयोगी साबित हुई हैं।
धान की सह्याद्रि पंचमुखी किस्म से हैड राइस लगभग 66.5% तक प्राप्त होता है।
धान की सह्याद्रि पंचमुखी किस्म की पैदावार अन्य किस्मों की तुलना में 26% अधिक उत्पादन दे सकती हैं।
धान की सह्याद्रि पंचमुखी किस्म के पकने की अवधि लगभग 130 से 135 दिन है।
(3) धान हीरा किस्म
धान की हीरा किस्म के विकास का श्रेय वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय (VKS College of Agriculture) (डुमरांव) के वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सिंह व उनकी टीम को जाता हैं।
धान की हीरा किस्म को हैदराबाद में आयोजित समन्वित चावल सुधार परियोजना (Integrated Rice Improvement Project) की 57वीं वार्षिक शोध बैठक में 27 अप्रैल 2022 को राष्ट्रीय स्तर पर पैदावार के लिए चयनित किया गया था।
धान की हीरा किस्म के पौधे 15 दिनों तक भी पानी में डूबे रहने पर भी खराब नहीं होते हैं।
धान की हीरा किस्म की पैदावार अन्य किस्मों की तुलना में अधिक होती हैं।
धान की हीरा किस्म की पैदावार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लगभग प्रति हेक्टेयर 70 से 80 क्विंटल है।
इसकी उपज सामान्य धान की तुलना में डेढ़ गुना अधिक हैं।
धान की अन्य बाढ़ में खराब ना होने वाली किस्में
धान की बाढ़ में खराब ना होने वाली इन किस्मों के अतिरिक्त अन्य और किस्में है जो बाढ़ प्रतिरोधी हैं। अन्य किस्में इस प्रकार हैं:
• बहादुर सब-1 किस्म
• रंजीत सब-1 किस्म
इन दोनों किस्मों के विकास का श्रेय असम विश्वविद्यालय (Assam University) के शोधकर्ताओं को जाता है।
असम में विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ आने से धान की फसल को नुकसान होता है और बाढ़ से फसल बर्बाद हो जाती है इसलिए इन किस्मों का विकास विशेष रूप से बराक वैली (असम) में धान की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए किया गया हैं क्योंकि विशेष रुप से बराक वैली (असम) में बाढ़ का प्रकोप अधिक रहता है। इस स्थिति में धान की इन किस्मों की बुवाई की जाती है।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए यह किस्में लाभकारी हैं।