कृषि विशेषज्ञों की रबी फसलों के लिए सलाह
देशभर में रबी फसलों की बुआई का अंतिम दौर चल रहा है, वहीं तिलहन फसलों की बुआई का काम अधिकांश क्षेत्रों में पूरा हो चुका है। ऐसे में किसानों के लिए फसलों की लागत कम करने और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए कृषि विशेषज्ञों द्वारा दिसंबर महीने के लिए कुछ अहम सलाह जारी की गई है।
राई-सरसों और तोरिया/लाही की खेती
किसान कृषि की नई तकनीकों का इस्तेमाल करके बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर किसान हित में सलाह जारी की जाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने दिसंबर माह में राई-सरसों और तोरिया/लाही के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सलाह दी है।
किसान इस प्रकार के बीज लगा सकते हैं
फसल उत्पादन में उन्नत बीजों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अच्छे, स्वस्थ बीज, समय पर बुआई और फसल सुरक्षा के उपायों से सरसों की उपज को बढ़ाया जा सकता है। जिन किसानों ने समय पर बुआई नहीं की है, वे मध्य दिसंबर तक राई-सरसों और तोरिया/लाही की पूसा सरसों 25, पूसा सरसों 26 और पूसा सरसों 28 की बुआई कर सकते हैं। ये प्रजातियाँ कम समय में तैयार होती हैं और देर से बुआई करने पर भी अच्छे परिणाम देती हैं।
पाले से बचने के उपाय
दिसंबर के अंत में तापमान में अचानक गिरावट से पाले का खतरा रहता है, जिससे फसल की बढ़वार और फली विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है। पाले से बचने के लिए सल्फरयुक्त रसायनों का उपयोग फायदेमंद हो सकता है। डाइमिथाइल सल्फोऑक्साइड का 0.2 प्रतिशत या 0.1 प्रतिशत थायो यूरिया का छिड़काव फसल को पाले से बचा सकता है। इसके साथ-साथ पाले के दौरान सिंचाई से भी नुकसान को कम किया जा सकता है।
राई-सरसों में सिंचाई का समय
राई-सरसों में सिंचाई की आवश्यकता जल की उपलब्धता पर निर्भर करती है। यदि एक सिंचाई उपलब्ध है, तो इसे 50-60 दिनों के बाद करें। अगर दो सिंचाइयां उपलब्ध हों, तो पहली सिंचाई बुआई के 40-50 दिनों बाद और दूसरी सिंचाई 90-100 दिनों बाद करें। अगर तीन सिंचाइयां हो, तो पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिनों बाद और फिर 30-35 दिनों के अंतराल पर दूसरी और तीसरी सिंचाई करें। बुआई के लगभग 2 महीने बाद जब फलियों में दाने भरने लगें, तब भी सिंचाई लाभकारी रहती है।
खरपतवार नियंत्रण के उपाय
तिलहन फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए 20-25 दिनों में एक बार निराई-गुडाई करनी चाहिए, जिससे फसल जल्दी बढ़ती है। रासायनिक नियंत्रण के लिए बुआई से पहले फ्लुक्लोरेलिन (45 ई.सी.) की 2.2 लीटर प्रति हेक्टेयर 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। बुआई के बाद लेकिन अंकुरण से पहले पेंडीमेथिलिन (30 ई.सी.) 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर छिड़कें। बुआई के 15-20 दिनों बाद घने पौधों को निकालकर उनकी आपसी दूरी 15 सेमी कर देना जरूरी है।
कीट और रोग नियंत्रण
सरसों की फसल पर विभिन्न हानिकारक कीटों का प्रकोप हो सकता है, जिनमें माहूं और आरा मक्खी प्रमुख हैं। इनकी उपस्थिति 25 कीट प्रति पौधा या 10 प्रतिशत पौधों पर होने पर कीटनाशक का छिड़काव करें। जैसे, इमिडाक्लोरोप्रिड (17.8 प्रतिशत) का 20-25 ग्राम, मोनोक्रोटोफ़ास 35 डब्ल्यू.एस.सी. का 250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर, या डाइमेथोएट 30 ई.सी. का 250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
खाद का प्रबंधन
राई-सरसों और तोरिया/लाही में सिंचाई के बाद बची हुई नाइट्रोजन का उपयोग करें। अधिक पानी और नाइट्रोजन का प्रयोग करने से कई रोग, जैसे सफेद रतुआ और मृदु रोमिल असिता की समस्या बढ़ सकती है। इनकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45, मैन्कोजेब या रिडोमिल का छिड़काव करें।
तोरिया की कटाई और बाद की फसलें
तोरिया के दाना गिरने की संभावना रहती है, इसलिए इसकी सही समय पर कटाई करनी चाहिए, ताकि अगली फसल के लिए खेत तैयार हो सके। तोरिया के बाद गेहूं, गन्ना, प्याज जैसी फसलें उगाई जा सकती हैं।
इस प्रकार, सही तकनीकों का पालन करके किसान राई-सरसों और तोरिया/लाही की अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं और फसलों की उपज को बढ़ा सकते हैं।