दलहनी फसलों में लगने वाले रोग और समाधान
दलहनी फसलें भारतीय कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।दलहनी फसलों का भारतीय कृषि में एक अहम स्थान है। ये फसलें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत भी हैं। दालों की खेती से किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं और साथ ही देश की खाद्य सुरक्षा में भी योगदान दे सकते हैं। इन फसलों को जड़ एवं कॉलर सड़न और हरदा रोग जैसे प्रमुख रोगों का सामना करना पड़ता है।ये रोग फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में सही पहचान और समय पर प्रबंधन करना आवश्यक है। आइए जानते हैं इन रोगों के लक्षण, कारण और प्रभावी उपाय।
दलहनी फसलों की खासियत
दलहनी फसलों की खेती मिट्टी के लिए बेहद फायदेमंद होती है क्योंकि ये वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं। ये फसलें पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। दलहनी फसलें सूखा सहनशील होती हैं और उन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे वे छोटे और सीमांत किसानों के लिए आदर्श फसल बन जाती हैं।
मिट्टी का निर्धारण
दलहनी फसलों के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। खेत में जल निकासी का अच्छा प्रबंध होना चाहिए ताकि जलभराव से फसल को नुकसान न हो। खेत की गहरी जुताई करें, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए और खरपतवार मुक्त हो। बुवाई से पहले जैविक खाद, जैसे गोबर खाद या वर्मी-कंपोस्ट, का उपयोग करें।
दलहनी फसलों में लगने वाले दो मुख्य रोग
दलहनी फसलों में लगने वाले दो मुख्य रोग हरदा रोग एवं जड़ एवं कॉलर सड़न हैं।इन रोगों से बचाव के लिए जागरूकता और सही प्रबंधन तकनीकों का पालन करना जरूरी है। बीज उपचार, खेत की नियमित देखभाल और उचित दवाओं का उपयोग करके किसान अपनी फसल को स्वस्थ रख सकते हैं और उपज बढ़ा सकते हैं।
(1) हरदा रोग
दलहनी फसलों में हरदा रोग के कारण पत्तियों और तनों पर सफेद-भूरे फफोले दिखाई देते हैं।रोग बढ़ने पर फसल कमजोर हो जाती है और उत्पादन घट जाता है।
- समाधान : ट्राईकोडरमा और कार्बेन्डाजिम जैसे फफूंदनाशकों से बीज का उपचार करें।
- फसल पर कवकनाशकों का समय-समय पर छिड़काव करें।
(2) जड़ एवं कॉलर सड़न
इस रोग के प्रभाव से पौधों की जड़ और तने के निचले हिस्से काले पड़ जाते हैं।पौधों को बीच से फाड़ने पर निचले ऊतक काले नजर आते हैं।यह रोग पौधे की वृद्धि को रोकता है और फसल की उपज में भारी कमी करता है।
- समाधान : प्रति किलोग्राम बीज में ट्राईकोडरमा की 5 ग्राम मात्रा या कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा से बीजों को उपचारित करें।
- रोगग्रस्त फसल में 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ों के आसपास पटवन करें।
- इसके अतिरिक्त प्रति लीटर पानी में कैप्टान (70%) + हेक्साकोनाजोल (5%)की 2 ग्राम मात्रा का घोल बनाकर जड़ों पर छिड़काव करें।
दलहनी फसलों को रोग मुक्त और स्वस्थ रखने के लिए सलाह
- फसल चक्र अपनाएं : एक ही फसल को बार-बार उगाने से बचें।
- खेत की सफाई: रोग फैलाने वाले अवशेषों को हटाकर मिट्टी को संक्रमण से मुक्त रखें।
- संतुलित उर्वरकों का प्रयोग : पौधों को आवश्यक पोषण प्रदान करें।
फसल की कटाई और भंडारण का कार्य
दलहनी फसलों को तब काटें जब फसल पूरी तरह से पक जाए। कटाई के बाद फसल को धूप में अच्छी तरह सुखाएं और भंडारण से पहले इसे साफ करें। भंडारण के लिए हवादार और सूखी जगह का चयन करें ताकि फसल को फंगस और कीड़ों से बचाया जा सके।