चने की खेती के लिए कृषि विशेषज्ञों की जरूरी सलाह
रबी फसलों की बुवाई का समय चल रहा है, जिसमें चना एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में उगाया जाता है। चने का उपयोग दाल और बेसन बनाने में किया जाता है, जिससे विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। इसकी उच्च बाजार मांग और अच्छी पैदावार से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। अगर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, तो किसान दिसंबर में इसकी पिछेती किस्में भी बो सकते हैं। जिन किसानों ने पहले ही चने की बुवाई कर ली है, उनके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने दिसंबर माह के लिए कुछ खास सुझाव दिए हैं, जो पैदावार बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं। आइए, चने की पैदावार को बेहतर बनाने के लिए 4 मुख्य उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
चने की फसल में पैदावार बढ़ाने के लिए करें ये 4 जरूरी कार्य
1. खरपतवार नियंत्रण
चने की अच्छी पैदावार के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी है। बुवाई के 30 दिन बाद एक बार निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे खरपतवार आसानी से हट जाते हैं और पौधों की जड़ों की बढ़वार बेहतर होती है। यह उपाय उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है।
2. शीर्ष तुड़ाई
चने की बुवाई के 30-40 दिनों बाद शीर्ष कालिका की तुड़ाई करने से पौधों में अधिक शाखाएं बनती हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
3. सिंचाई प्रबंधन
उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में फूल बनने के समय एक बार सिंचाई करना लाभकारी होता है। उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में पहली सिंचाई शाखाएं निकलते समय और दूसरी सिंचाई फूल बनने के दौरान करें। स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करने पर पानी की बचत होती है।
4. कीट एवं रोग प्रबंधन
चने की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप अधिक होता है। इसके नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 2 किलोग्राम जिंक मैगनीज कार्बामेंट को 1000 लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें। अन्य जैविक और रासायनिक उपचारों का भी उपयोग कर सकते हैं।
चने की फसल में सिंचाई का उपयुक्त समय
यदि बारिश नहीं हो रही है और मृदा में नमी की कमी है, तो पहली सिंचाई बुवाई के 40-50 दिनों बाद और दूसरी सिंचाई 70-75 दिनों के बाद करें। फूलों के समय सिंचाई करने से बचें, क्योंकि इससे फूल झड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त खरपतवारों के कारण भी चने की फसल खराब होने की समस्या होती है। चने की सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर विधि का प्रयोग करें जिससे कम पानी में अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जा सके। स्प्रिंकलर विधि का प्रयोग करने से लगभग 40% तक पानी की बचत होती है।
चने की खेती में खाद और उर्वरकों का सही उपयोग
चने की पछेती बुवाई में प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करें। फसल में जिंक की कमी होने पर प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट का उपयोग करें।
इसके अतिरिक्त फसल में शाखा या फली बनते समय 2% यूरिया या DAP के घोल का छिड़काव करने से अच्छी पैदावार मिलती है।
चने की फसल में झुलसा रोग का प्रबंधन
चने की फसल में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप होता है, जिनमें से झुलसा रोग प्रमुख है। इस पर नियंत्रण करने के लिए रासायनिक उर्वरकों के रूप में प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में जिंक मैगनीज कार्बामेंट की 2.0 किग्रा मात्रा को मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5% WG/600 ग्राम और कार्बेंडाजिम 12% या क्लोरोथालोनिल 70% WP/300 ग्राम और मैंकोजेब 63% WP/500 ग्राम या मेटिराम 55% मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
जैविक उर्वरकों के रूप में प्रति एकड़ स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस की 250 ग्राम मात्रा या ट्राईकोडर्मा विरडी की 500 ग्राम मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
अधिक पैदावार के लिए चने की बुवाई के तरीके
चने की बुवाई से पहले खेत को पुरानी फसल के अवशेषों से पूरी तरह साफ कर लेना चाहिए, ताकि कीट और फफूंद का संक्रमण न हो। अधिक पैदावार के लिए बुवाई सही विधि से करनी चाहिए और प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। बीजों की अंकुरण क्षमता की जांच करने के लिए 100 बीजों को 8 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें और फिर इन्हें गीले तौलिये से ढककर 4-5 दिन तक कमरे के तापमान पर रखे। फिर अंकुरित बीजों की संख्या गिनें। यदि 90% से ज्यादा बीज अंकुरित होते हैं, तो बीज की गुणवत्ता सही मानी जाती है।
सीड ड्रिल मशीन का उपयोग करके बुवाई करें। अगर खेत में नमी कम हो, तो बीजों को गहराई में बोकर पाटा लगाएं। पौधों की संख्या 25-30 प्रति वर्ग मीटर होनी चाहिए, और पंक्तियों के बीच 30 सेमी तथा पौधों के बीच 10 सेमी की दूरी रखें। सिंचित अवस्था में काबुली चने के लिए पंक्तियों के बीच 45 सेमी की दूरी रखनी चाहिए। देरी से बुवाई करने पर, पंक्तियों के बीच की दूरी 25 सेमी रखनी चाहिए। बीज की मात्रा दानों के आकार, बुवाई के समय और भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर, देसी चने के छोटे दानों के लिए 65-75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, मध्यम दानों के लिए 75-80 किलोग्राम और काबुली चने के लिए 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर रहती है। इन उपायों से चने की फसल में अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।