अब नहीं चाहिए बार-बार सिंचाई, इस जैविक खाद से बढ़ेगी धान की पैदावार

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जानिए, कौन-सी है यह जैविक खाद जिससे धान की खेती में घटेगी पानी की खपत

धान (Rice) भारत की एक प्रमुख खरीफ फसल है, जिसकी खेती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सहित अनेक राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है। यह फसल मुख्य रूप से पानी पर निर्भर होती है और इसकी खेती में भारी मात्रा में सिंचाई की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि जल संकट झेल रहे क्षेत्रों में किसान अब धान की खेती से पीछे हटने लगे हैं। इसके साथ ही सरकार भी लगातार किसानों को ऐसी फसलें उगाने की सलाह दे रही है, जिनमें पानी की खपत कम हो।

हरियाणा सरकार जैसे कुछ राज्य किसानों को धान के स्थान पर वैकल्पिक फसलें अपनाने पर सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन भी दे रहे हैं। इन सबके बीच कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी जैविक खाद की खोज की है, जिसके इस्तेमाल से धान की खेती में सिंचाई की जरूरत काफी हद तक कम हो जाती है। इस खाद की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे किसान घर पर ही सस्ते में तैयार कर सकते हैं।

धान की खेती में पानी की खपत कितनी होती है?

धान को एक अत्यधिक जल-आधारित फसल माना जाता है। पारंपरिक तरीकों से धान की खेती करने पर किसान को कम से कम चार बार सिंचाई करनी पड़ती है, जिसमें बहुत अधिक मात्रा में पानी की खपत होती है। एक शोध के अनुसार, एक किलो धान उत्पादन करने के लिए करीब 3,000 से 5,000 लीटर तक पानी की जरूरत होती है। जल संकट और गिरते भूजल स्तर को देखते हुए यह आंकड़ा चिंताजनक है। लगातार सिंचाई करने से न केवल पानी की बर्बादी होती है, बल्कि खेती की लागत भी बढ़ जाती है। इसीलिए किसानों के लिए ऐसी तकनीकों और विकल्पों की तलाश जरूरी हो गई है, जो जल की बचत के साथ-साथ फसल की पैदावार को बनाए रखें।

नारियल से बनी यह खाद कैसे करती है मदद?

यह जैविक खाद नारियल के छिलकों और डाभ (कच्चे नारियल के अंदर का रस और गूदा) से तैयार की जाती है। नारियल के फाइबर में उच्च जलधारण क्षमता होती है, जो मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करता है। इस खाद के प्रयोग से खेत की मिट्टी लंबे समय तक नम बनी रहती है, जिससे बार-बार सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके अलावा, यह खाद पूरी तरह प्राकृतिक और पर्यावरण अनुकूल होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है और रासायनिक खादों की आवश्यकता कम हो जाती है।

नारियल खाद को कैसे तैयार किया जाता है?

इस खाद को बनाना आसान है और इसमें ज्यादा खर्च भी नहीं होता। सबसे पहले नारियल के सूखे छिलकों और डाभ को एकत्र कर किसी छायादार स्थान या गड्ढे में 15 से 20 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। आप इसमें थोड़ी सी गोबर की खाद या पुराने कम्पोस्ट को मिलाकर इसके विघटन की प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं। जब यह मिश्रण पूरी तरह विघटित हो जाए और खाद का रूप ले ले, तब इसे खेत में प्रयोग किया जा सकता है। इस खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से यह सिंचाई के पानी को लंबे समय तक खेत में रोकने में मदद करती है।

यह खाद धान की सिंचाई में कैसे काम करती है?

नारियल खाद की सबसे बड़ी विशेषता इसकी जलधारण क्षमता है। यह खाद जब खेत में डाली जाती है, तो यह एक प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करती है। यह सिंचाई या वर्षा के पानी को अवशोषित कर लेती है और धीरे-धीरे पौधों की जड़ों तक पहुंचाती है। इसके कारण खेत में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। प्रयोगों में देखा गया है कि यह खाद धान की खेती में तीन सिंचाई की जगह एक ही सिंचाई में काम कर सकती है। इससे पानी के साथ-साथ किसानों के श्रम और सिंचाई में लगने वाले खर्च की भी बचत होती है।

कितनी मात्रा में करें नारियल खाद का प्रयोग?

धान की खेती में नारियल खाद की मात्रा खेत के आकार और मिट्टी की संरचना के अनुसार तय की जाती है। सामान्यतः 1 किलो नारियल खाद 10 लीटर पानी को सोख सकती है। यदि खेत की मिट्टी रेतीली है तो खाद की मात्रा थोड़ा अधिक रखनी चाहिए क्योंकि ऐसी मिट्टी में नमी जल्दी खत्म हो जाती है। इस जैविक खाद का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता और यह सभी प्रकार की फसलों के लिए सुरक्षित होती है।

पारंपरिक खेती में लगने वाले रासायनिक उर्वरकों की मात्रा

धान की किस्मों के आधार पर रासायनिक उर्वरकों की जरूरत अलग-अलग होती है:

  • कम अवधि वाली किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (N), 40 किग्रा फॉस्फोरस (P), और 40 किग्रा पोटाश (K) की जरूरत होती है।
  • मध्यम अवधि वाली किस्मों में 150 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस और 50 किग्रा पोटाश का प्रयोग करना होता है।
  • लंबी अवधि की किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 150 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस और 80 किग्रा पोटाश की मात्रा उचित मानी जाती है।

हालांकि, अगर किसान जैविक खाद का नियमित प्रयोग करें तो रासायनिक खाद की खपत में भी कमी लाई जा सकती है, जिससे मिट्टी की सेहत लंबे समय तक बनी रहती है।

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