बासमती धान की रोपाई के दौरान इन 7 महत्वपूर्ण टिप्स का करें प्रयोग , होगी भरपूर पैदावार

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जानिए , बासमती धान की रोपाई में ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बातें

खरीफ फसलों की बुवाई का समय है, और इस दौरान मानसून की बारिश भी हो रही है। बारिश से कई स्थानों पर फसलें प्रभावित हो रही हैं, वहीं कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ने के कारण धान की बुवाई में देरी हो रही है। ऐसे में, धान की बुवाई करते समय हमें कुछ विशेष सावधानियाँ बरतने की आवश्यकता है ताकि बेहतर पैदावार सुनिश्चित की जा सके। कृषि विभाग की सलाह लेने से आप अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु के अनुसार सही बुवाई कर सकते हैं। बासमती धान की रोपाई के समय ध्यान रखने वाली कुछ जरूरी बातें कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार आपके लिए लाभकारी साबित हो सकती हैं।
आइए , बासमती धान (Basmati Rice) की रोपाई के समय ध्यान रखने वाली 7 महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानिए , जो आपको बेहतर और अधिक पैदावार प्राप्त करने में मदद करेंगी। आइए, इन महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानते हैं:

(1) बुवाई से पहले खेत की सही तैयारी करें

बासमती धान की खेती शुरू करने से पहले खेत की तैयारी बेहद महत्वपूर्ण है। खेत को समतल करने के लिए लेजर लेवलर का उपयोग करें, जिससे पानी का सही वितरण सुनिश्चित हो सके। दो से तीन बार जुताई करके खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। खेत का आकार छोटा रखें ताकि पानी की बचत हो सके और फसल की बढ़ोतरी में मदद मिले। बासमती धान के लिए चिकनी, जल धारण क्षमता वाली मिट्टी आदर्श रहती है। इसके साथ ही, खेत के किनारे मजबूत मेड़ बनाना भी जरूरी है ताकि पानी की बर्बादी न हो और खेत में समतलता बनी रहे।

(2) हरी खाद का उपयोग करें

धान की बुवाई से पहले खेत में हरी खाद की बुवाई करनी चाहिए। ढैंचा, सनई, लोबिया या मूंग जैसी फसलों को हरी खाद के रूप में बुआई करें। बासमती धान की रोपाई से पहले खेत में पानी भरकर हरी खाद को पलट दें। इससे खेत की मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी पूरी होती है और जुताई की लागत भी कम हो जाती है। हरी खाद से खेत की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है, जो धान की बेहतर वृद्धि में सहायक होती है।

(3) सही किस्म और पौध का चयन करें

बासमती धान की खेती के लिए उपयुक्त किस्म का चयन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ‘पूसा बासमती 1509’ एक बहुत ही अच्छा विकल्प है, लेकिन क्षेत्रीय जलवायु और मिट्टी के अनुसार किस्म का चयन करने के लिए कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेना चाहिए। बासमती धान की रोपाई के लिए 20 से 25 दिन पुरानी पौध का उपयोग करें, क्योंकि यह पौध स्वस्थ रहती है और अधिक उत्पादन देती है।

(4) पौध का उपचार करें

ध्यान रखें कि रोपाई से पहले पौध का उपचार करना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजियम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम को एक लीटर पानी में मिलाकर पौध को एक घंटे तक डुबोकर रखें। इससे रोगाणुओं और कीटों से पौधों का बचाव होता है। इसके बाद, पौध के ऊपरी 3-4 सेंटीमीटर हिस्से को काटकर नष्ट कर देना चाहिए ताकि पौधों का विकास सही दिशा में हो सके। पौधों की रोपाई हमेशा कतारों में करें, जिससे वे सूर्य के प्रकाश और हवा का पूरा लाभ उठा सकें।

(5) रोपाई में उचित दूरी बनाए रखें

रोपाई करते समय पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखें और कतारों के बीच 40 सेंटीमीटर का स्थान रखें। इस तरह से पौधों को पर्याप्त हवा और सूरज की रोशनी मिलती है, जिससे वे स्वस्थ रहते हैं। यह कीटों और बीमारियों के प्रकोप को कम करने में भी मदद करता है। पौधों की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में करें, इससे पौध जल्दी पनपते हैं और उनकी जड़ें मजबूत होती हैं।

(6) उर्वरकों का सही और समय पर उपयोग करें

बासमती धान की अच्छी वृद्धि के लिए उर्वरकों का सही तरीके से प्रयोग जरूरी है। ऊंची किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलो डीएपी, 70 किलो पोटाश और 25 किलो जिंक सल्फेट की आवश्यकता होती है। बौनी किस्मों के लिए यूरिया का 140 किलो उपयोग किया जा सकता है। इन उर्वरकों का उपयोग अंतिम पडलिंग के समय करें, ताकि पौधों को सही पोषण मिल सके और फसल की वृद्धि बेहतर हो।

(7) सिंचाई का सही तरीका अपनाएं

बासमती धान की रोपाई के बाद खेत में 2 से 3 सेंटीमीटर पानी का भराव रखें। शुरुआत में हल्की सिंचाई करें ताकि दरारें न बनें। 30 दिनों तक पानी का स्तर 3 से 5 सेंटीमीटर तक बनाए रखें, इससे खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है और धान की वृद्धि में सुधार होता है। बाली निकलने और दाने में दूध बनने के दौरान खेत में पानी भरा रहना चाहिए, क्योंकि यह दानों के सही तरीके से बढ़ने में मदद करता है। पाटा चलाने से कल्ले अधिक निकलते हैं और उनका फुटाव अच्छा होता है। बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित पाटा तकनीक का उपयोग करना भी एक अच्छा विकल्प है, जिससे फसल का उत्पादन बढ़ सकता है।

इन उपायों को अपनाकर आप बासमती धान की अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। यह बुवाई से लेकर फसल की देखभाल तक के हर चरण में महत्वपूर्ण हैं।

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