तिल की खेती भारत में प्रमुख तिलहनी फसलों में से एक मानी जाती है। तिल में औषधीय गुणों के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले तेल की मात्रा होती है, जो इसे किसानों के लिए एक लाभदायक फसल बनाती है। यदि आप तिल की खेती करना चाहते हैं, तो सही समय, विधि और अन्य जानकारी का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैं तिल की खेती कैसे करें।
तिल की खेती का सही समय
- तिल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय मानसून के दौरान होता है। इसे मुख्यतः खरीफ सीजन (जुलाई-अगस्त) में बोया जाता है, जब बारिश अच्छी होती है।
- रबी सीजन में भी इसे कुछ क्षेत्रों में अक्टूबर-नवंबर के दौरान बोया जा सकता है, लेकिन इसमें सिंचाई की आवश्यकता होती है।
मिट्टी का चुनाव और तैयारी
- तिल की खेती के लिए हल्की से मध्यम काली मिट्टी, बलुई दोमट और जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
- खेत की जुताई 2-3 बार करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें और समतल कर दें। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए खेत में हल्की सिंचाई करके बुवाई करें।
बीज की मात्रा और बुवाई की विधि
- तिल के बीज की मात्रा लगभग 2-3 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। बीज को बोने से पहले एक बार फफूंदनाशक दवा से उपचारित कर लेना चाहिए ताकि फसल रोग मुक्त रहे।
- बुवाई के लिए सीधी लाइन में कतार विधि अपनाई जाती है। कतारों के बीच लगभग 25-30 सेमी की दूरी रखें और पौधों के बीच 10-15 सेमी का अंतराल रखें।
उपयुक्त जलवायु और तापमान
- तिल की खेती के लिए 20-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है। यह फसल गर्म और शुष्क जलवायु में बेहतर परिणाम देती है।
- अत्यधिक वर्षा या बहुत कम तापमान इस फसल के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए, अच्छी जल निकासी वाली भूमि और उचित मौसम का चयन करें।
खाद और उर्वरक का प्रयोग
- तिल की खेती के लिए जैविक खाद जैसे गोबर की खाद का प्रयोग फायदेमंद होता है। साथ ही, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें।
- बुवाई के समय खेत में 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 10-15 किलोग्राम फॉस्फोरस और 10 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ डालना उचित रहता है।
सिंचाई और जल प्रबंधन
- तिल की फसल में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती, लेकिन बीज अंकुरण के समय हल्की सिंचाई करें।
- यदि सूखा पड़ने की संभावना हो, तो 1-2 बार अतिरिक्त सिंचाई कर सकते हैं। विशेषकर, फूल आने और फल लगने के समय हल्की सिंचाई करने से उपज में वृद्धि होती है।
रोग और कीट प्रबंधन
- तिल की फसल को तना छेदक कीट, सफेद मक्खी और फफूंद जैसे रोगों से नुकसान हो सकता है। इनसे बचाव के लिए जैविक कीटनाशक या फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
- पौधों के बीच की दूरी और समय-समय पर निराई-गुड़ाई करने से भी कीटों का प्रभाव कम होता है।
कटाई और उपज
- तिल की फसल बुवाई के लगभग 80-90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। कटाई के समय पौधे का रंग हल्का पीला हो जाता है।
- कटाई के बाद, तिल को धूप में अच्छी तरह सुखा लें और बीज निकालकर भंडारण करें। उचित भंडारण से बीज में नमी का स्तर नियंत्रित रहता है और यह लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।
तिल की खेती में कम लागत और कम देखभाल की आवश्यकता होती है, इसलिए यह किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प है। उचित समय पर बुवाई, उर्वरकों का संतुलित उपयोग और रोग प्रबंधन से तिल की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।