सरसों की खेती भारत में मुख्यत: रबी सीजन में की जाती है और यह फसल ठंडे मौसम में अच्छी होती है। सरसों से न केवल तेल प्राप्त होता है बल्कि इसके बीज, पत्ते और अन्य उत्पाद भी कई उपयोगों में आते हैं। अगर आप सरसों की खेती से अधिक पैदावार प्राप्त करना चाहते हैं, तो कुछ विशेष कृषि तकनीकों का पालन करना जरूरी है। आइए जानते हैं सरसों की खेती का सही तरीका।
मिट्टी का चयन और तैयारी
- उपयुक्त मिट्टी: सरसों की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह मिट्टी पौधों के लिए उचित जल निकास और नमी का संतुलन बनाए रखती है।
- पीएच स्तर: मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी से बचना चाहिए।
- मिट्टी की जुताई: बुवाई से पहले मिट्टी को 2-3 बार अच्छी तरह जोतें और एक बार रोटावेटर चलाकर जमीन को समतल बना लें। इससे मिट्टी में अच्छी नमी बनी रहती है और बीजों का जमाव बेहतर होता है।
उपयुक्त समय और बीज दर
- बुवाई का समय: सरसों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है। ठंड के मौसम में बुवाई से फसल का विकास अच्छा होता है और पैदावार में भी वृद्धि होती है।
- बीज दर: प्रति हेक्टेयर 4-5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को स्वस्थ और प्रमाणित स्रोतों से ही लें।
- बीज उपचार: बीजों को फफूंदनाशक और कीटनाशक दवाओं जैसे कि थायरम या कैप्टान से उपचारित करें। इससे बीज जनित रोगों से सुरक्षा मिलती है।
उर्वरक का सही उपयोग
- प्राकृतिक खाद: बुवाई से पहले खेत में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाएं। इससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है।
- रासायनिक उर्वरक: सरसों की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करें। यह उर्वरक बीज बुवाई के समय या उससे पहले खेत में मिला दें।
बुवाई की विधि और दूरी
- बुवाई की विधि: सरसों की बुवाई कतारों में करें। इसके लिए ट्रैक्टर ड्रिल या सीड ड्रिल का उपयोग किया जा सकता है।
- बीज की गहराई: बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं, ताकि अंकुरण अच्छा हो सके।
- दूरी: पंक्तियों के बीच 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10-15 सेंटीमीटर की दूरी रखें। इससे पौधों को विकास के लिए उचित स्थान मिलता है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है।
सिंचाई प्रबंधन
- पहली सिंचाई: बुवाई के 30-35 दिन बाद पहली सिंचाई करें। सरसों की फसल में सिंचाई बहुत अधिक नहीं करनी चाहिए।
- सिंचाई की आवृत्ति: सरसों के पौधों की जरूरत के अनुसार ठंड के मौसम में 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती है। फसल में फूल आने और दाने बनने के समय सिंचाई का खास ध्यान रखें।
खरपतवार नियंत्रण
- खरपतवारों की पहचान: सरसों के खेत में खरपतवार तेजी से बढ़ते हैं, जो फसल की पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं।
- खरपतवार नियंत्रण: बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई करें और दूसरी निराई बुवाई के 40-45 दिन बाद करें। साथ ही पेंडीमिथालिन जैसे खरपतवारनाशक का उपयोग करें।
कीट एवं रोग नियंत्रण
- आम कीट: सरसों की फसल में माहू (एफिड्स) और पत्ती खाने वाले कीट प्रमुख होते हैं। इनके नियंत्रण के लिए कीटनाशक का उपयोग करें।
- रोग नियंत्रण: सफेद जंग और अल्टरनेरिया ब्लाइट जैसे रोगों के लिए समय-समय पर फफूंदनाशक का छिड़काव करें। फसल की नियमित निगरानी करें और आवश्यकता पड़ने पर उपचार करें।
कटाई और उपज
- कटाई का समय: जब फसल की फलियाँ पीली होने लगे, तो कटाई करें। कटाई में देरी होने से फसल के दाने झड़ सकते हैं।
- कटाई की विधि: फसल को हाथ से काटकर धूप में सुखाएं और थ्रेसर से दानों को अलग करें।
- उपज: उचित देखभाल और खेती तकनीक का पालन करने से सरसों की प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है।
सरसों की खेती में अच्छी देखभाल और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। मिट्टी की तैयारी, सही समय पर बुवाई, उर्वरक का संतुलित उपयोग और कीट नियंत्रण जैसे उपाय अपनाकर आप सरसों की उपज को बढ़ा सकते हैं।