किनोवा की खेती: जानिए किनोवा की खेती से मुनाफे के अवसर और इसकी खासियतें| Quinoa Farming

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Quinoa Farming : भारत में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते किनोवा की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। किनोवा (Quinoa) एक पोषक तत्वों से भरपूर अनाज है, जो प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, और खनिजों का बेहतरीन स्रोत माना जाता है। इसकी खेती किसानों के लिए अधिक मुनाफे का जरिया बन सकती है। इस लेख में हम किनोवा की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे, जिससे किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें।

किनोवा क्या है?

किनोवा, जिसे “सुपरफूड” भी कहा जाता है, अमरनाथ के पौधे की एक प्रजाति है। यह विशेष रूप से दक्षिण अमेरिकी देशों जैसे पेरू और बोलीविया में उगाया जाता है। किनोवा का अनाज ग्लूटेन-फ्री होता है और इसके पोषक तत्वों का स्तर इसे विश्वभर में प्रसिद्ध बना देता है।

किनोवा के बीजों या किनोवा के पौधों की तस्वीर

किनोवा की खेती के फायदे

  1. उच्च पोषक तत्वों की उपलब्धता – किनोवा में प्रोटीन, फाइबर और विटामिन्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
  2. कम पानी की आवश्यकता – किनोवा की फसल को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती संभव है।
  3. कम लागत में अधिक लाभ – किनोवा की खेती में लागत कम आती है और इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है।
  4. जलवायु के प्रति सहनशीलता – किनोवा की फसल उच्च और निम्न तापमान दोनों में पनप सकती है, जिससे यह अधिकांश कृषि योग्य क्षेत्रों में उगाई जा सकती है।

किनोवा की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और भूमि

किनोवा की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सर्वोत्तम मानी जाती है। इसकी खेती के लिए:

  • तापमान: 15°C से 25°C का तापमान उपयुक्त है।
  • भूमि: हल्की बलुई मिट्टी, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, किनोवा की खेती के लिए उचित है। मिट्टी का pH स्तर 6-8 के बीच होना चाहिए।
किनोवा की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु में उगाए गए खेत का चित्र

किनोवा की बुवाई का समय और विधि

  • बुवाई का समय: भारत में किनोवा की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है।
  • बुवाई की विधि: इसकी बुवाई सीधी कतारों में की जाती है। पंक्तियों के बीच की दूरी 30-40 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10-15 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

किनोवा की फसल में सिंचाई

किनोवा की फसल को बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। फसल के मुख्य चरणों जैसे अंकुरण, फूल आने और दाना बनने के समय हल्की सिंचाई की जाती है। यह फसल शुष्क क्षेत्रों में बेहतर परिणाम देती है और जल की कमी वाले क्षेत्रों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है।

किनोवा की खेती में खाद और उर्वरक

किनोवा की फसल को अधिक मात्रा में खाद की आवश्यकता नहीं होती है:

  • जैविक खाद: बुवाई से पहले खेत में जैविक खाद डालना लाभकारी होता है।
  • रासायनिक उर्वरक: फसल के विकास के दौरान 50 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, और 20 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें।
जैविक खाद डालते हुए किसान का चित्र

फसल की कटाई और उपज

किनोवा की फसल 90-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। फसल को काटने के बाद इसे धूप में सुखा लें और फिर अनाज को अलग कर लें। अच्छी देखभाल से किनोवा की फसल प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल तक उपज दे सकती है।

किनोवा की खेती में लागत और मुनाफा

किनोवा की फसल की उत्पादन लागत कम होती है, लेकिन इसकी बाजार में कीमत अच्छी मिलती है। इसकी खेती से किसान एक हेक्टेयर में लगभग ₹1-1.5 लाख तक का मुनाफा कमा सकते हैं।

किनोवा की खेती की कटाई और उपज

किनोवा की खेती के लिए सरकारी योजनाएँ और सब्सिडी

भारत सरकार किसानों को किनोवा की खेती के लिए अनुदान और सहायता प्रदान करती है। किसान कृषि विभाग से किनोवा की खेती से संबंधित योजनाओं और सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं।

KisanHelps.in

"मैं एक किसान हूँ और पिछले 5 वर्षों से किसानों के लिए उपयोगी जानकारी साझा करने का काम कर रहा हूँ। मंडियों के ताजा भाव, सरकारी योजनाओं की जानकारी और खेती से जुड़ी नई तकनीकों को सरल भाषा में किसानों तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ, ताकि वे जागरूक और आत्मनिर्भर बन सकें।"

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