आलू की खेती कैसे करें : आलू की उन्नत किस्मों से पाए भरपूर उत्पादन

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आलू की खेती और किस्मों के बारे में जानकारी

आलू एक कंदीय सब्जी वर्ग के अंतर्गत आने वाली फसल है।आलू सभी की पसंदीदा सब्जी है जो सभी राज्यों में खाया जाता है।आलू की सब्जी बनाकर खाई जाती है इसे अन्य सब्जी के साथ बनाकर भी खा जा सकता है।इसके अतिरिक्त भी आलू से कई सामग्री बनाई जाती है।सौंदर्य प्रसाधनों में भी आलू का उपयोग किया जाता है इसलिए आलू की खेती हमारे देश में कई राज्य में की जाती है।हमारे देश में आलू उगाने वाले किसानों के लिए खर्चे से कम मुनाफा मिलना एक सबसे बड़ा कारण है।किसान भाइयों की समस्या को दूर करने के लिए के द्वारा ऐसी किस्म के बारे में जानेंगे जिससे कम खर्चे में अच्छा मुनाफा प्राप्त हो जाए।आइए आलू की खेती से संबंधित जानकारी प्राप्त करें।

आलू की विभिन्न किस्में

आलू की विभिन्न किस्में पाई जाती है जिनमें से आलू की उन्नत किस्में इस प्रकार है-

आलू की कम समय में अधिक पैदावार वाली किस्में

आलू की कम समय में अधिक पैदावार देने वाली किस्म भी है ।सामान्यतः आलू की औसत पैदावार लगभग प्रति हेक्टेयर 152 क्विंटल है किंतु आलू की कम समय में अधिक पैदावार देने वाले किस्म में कुफरी किस्में आती है जिसका उत्पादन अधिक होता है ।यह कुफरी किस्में लगभग प्रति हेक्टेयर 152 से 400 क्विंटल तक पैदावार देती है और इनके पकने की अवधि लगभग 70 से 135 दिन है।आलू की ये कुफरी किस्में इस प्रकार हैं-

(1) कुफरी ज्योति – आलू की कुफरी ज्योति किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 150 से 250 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी ज्योति किस्म के पकने की अवधि लगभग 80 से 150 दिन है।

(2) कुफरी लालिमा – आलू की कुफरी लालिमा किस्म आगे आने वाली झुलसा रोग के लिए मध्यम अवरोधी किस्म है।आलू की कुफरी लालिमा किस्म के पकने की अवधि लगभग 90 से 100 दिन है।

(3) कुफरी चंद्र मुखी – आलू की कुफरी चंद्र मुखी किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी चंद्र मुखी किस्म के पकने की अवधि लगभग 80 से 90 दिन है।

(4) कुफरी सिंदूरी – आलू की कुफरी सिंदूरी किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी सिंदूरी किस्म के पकने की अवधि लगभग 120 से 125 दिन है।

(5) कुफरी अलंकार – आलू की कुफरी अलंकार किस्म के विकास का श्रेय केंद्रीय आलू अनुसंधान शिमला को जाता हैं।आलू की कुफरी अलंकार किस्म पछेती अंगमारी रोग के प्रति सहनशील हैं।आलू की कुफरी अलंकार किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी अलंकार किस्म के पकने की अवधि लगभग 70 दिन है।

(6) कुफरी स्वर्ण – आलू की कुफरी स्वर्ण किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी स्वर्ण किस्म के पकने की अवधि लगभग 110 दिन है।

(7) कुफरी देवा – आलू की कुफरी देवा किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी देवा किस्म के पकने की अवधि लगभग 120 से 125 दिन है।

(8) कुफरी शीलमान – आलू की कुफरी शीलमान किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 250 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी शीलमान किस्म के पकने की अवधि लगभग 100 से 130 दिन है।

(9) कुफरी नवताल G-2524 – आलू की कुफरी नवताल किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी नवताल किस्म के पकने की अवधि लगभग 75 से 85 दिन है।

आलू की संकर किस्में

(1) कुफरी जवाहर JH-222 किस्म – आलू की कुफरी जवाहर JH-222 किस्म आगे आने वाली झुलसा रोग और फोम रोग के लिए सहनशील किस्म है।आलू की कुफरी जवाहर JH-222 किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल तक होता है।आलू की कुफरी जवाहर JH-222 किस्म के पकने की अवधि लगभग 90 से 110 दिन है।

(2) E-4486 किस्म – आलू की E-4486 किस्म को मुख्य रूप से मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार , हरियाणा , गुजरात और पश्चिम बंगाल में लगाने के लिए उपयोगी किस्म हैं।आलू की E-4486 किस्म से उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल तक होता है।आलू की E-4486 किस्म के पकने की अवधि लगभग 135 दिन है।

आलू की नई किस्में

कुफरी चिप्सोना-1 , कुफरी चिप्सोना-2 , कुफरी आनंद और कुफरी गिरिराज आदि।

आलू की आगे आने वाली किस्म

कुफरी चंद्र मुखी , कुफरी अलंकार , कुफरी पुखराज , कुफरी जवाहर और कुफऱी अशोका आदि।

आलू की मध्यम समय वाली किस्म

कुफरी लालिमा , कुफरी बहार , कुफरी सदाबहार और कुफरी सतलुज आदि।

देर से आने वाली किस्म

कुफरी सिंदूरी , कुफरी बादशाह और कुफरी फ्ऱाईसोना आदि।

आलू की खेती में प्रयोग होने वाले यन्त्र

  • बुवाई के लिए – ट्रैक्टर और कल्टीवेटर
  • उचित गहराई के लिए – आलू प्लांटनर
  • खुदाई के लिए – पोटैटो डिग्गर यंत्र
  • सिंचाई के लिए – स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई यंत्र

आलू की खेती के लिए उपयुक्त समय

सामान्य रूप से आलू की बुवाई के लिए उचित समय 15अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक होता है।
आलू की आगे की बुवाई का समय 15 से 25 सितंबर और पछेती बुवाई का समय 15 नवंबर से 25 दिसंबर के मध्य होता है।

आलू का बीज कहां से लें??

आलू के बीज का उत्पादन टिशु कल्चर के द्वारा किया जाता है जिससे कि वायरस रहित आलू का बीज मिल जाता है।प्रत्येक वर्ष लगभग एक लाख सूक्ष्म पौधों की पैदावार होती है।वही नेट हाउस में 5 से 6 लाख तक मिनी ट्यूबर की पैदावार होती है। किसान भाई आलू के बीज आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ (करनाल)से ले सकते हैं।शामगढ़ (करनाल) से किसानों को आलू की 3 किस्में कुफरी पुखराज , कुफरी ख्याति और कुफरी चिप्सोना-1 के बीज मिल जाते हैं।केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला(Central Potato Research Institute,Shimla)और अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र लीमा , पेरू के साथ नई किस्मों की परीक्षण करते हैं।

आलू की खेती जैविक तरीके से

हमारे देश में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है जिस कारण देश में आलू की जैविक खेती भी की जाती है। किसान भाई आलू की जैविक खेती तो करते हैं किंतु जानकारी की कमी होने के कारण ज्यादा पैदावार नहीं ले पाते इसलिए आलू की जैविक खेती में बुवाई और उर्वरक के साथ किस्म के चयन पर ध्यान दिया जाए तो ज्यादा पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

आलू की बुवाई का वैज्ञानिक तरीका

आलू की बुवाई का वैज्ञानिक तरीका भी प्रचलित है जिसके अंतर्गत सबसे पहले खेत तैयार करें।खेत तैयार करने के लिए ट्रैक्टर और कल्टीवेटर की सहायता से खेत की गहरी जुताई करें।खेत को समतल बनाने के लिए पाटा का उपयोग करें। खेत की जुताई के पश्चात महिंद्रा आलू प्लांटनर यंत्र की सहायता से आलू के बीजों को बोए।महिंद्रा आलू प्लांटनर यंत्र आलू की बुवाई की एक सबसे बेहतरीन मशीन है क्योंकि इसमें हाई लेवल सिंगूलेशन होने के कारण आलू के बीजों को नुकसान नहीं होता और बीज एक ही जगह पर और व्यवस्थित डलता है।महिंद्रा आलू प्लांटनर से बुवाई करने पर आलू की गुणवत्ता बेहतर होती है और पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है क्योंकि इसमें लगा गहराई नियंत्रण पहिया आलू के बीजों की बुवाई एक निश्चित गहराई पर करता है।इससे 20 से 60 मिलीमीटर आलू के बीज को सरलता से बोया जा सकता है।महिंद्रा आलू प्लांटनर यंत्र में एक फर्टिलाइजर टैंक होता है जो बीच की बुवाई करते समय उर्वरक का वितरण आनुपातिक रूप में करता है।बुवाई के दौरान दूरी का विशेष ध्यान रखना चाहिए।इसमें पंक्ति की आपसी दूरी 50 सेंटीमीटर और पौधों की आपसी दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखें।यदि बीजों की बात करें तो बीजों की मात्रा लगभग प्रति हेक्टर 25 से 30 क्विंटल होना चाहिए। गहराई तथा दूरी का संतुलन होना चाहिए जिससे पैदावार पर्याप्त मात्रा में मिल सके।महिंद्रा आलू प्लांटनर यंत्र एक ऐसी बेहतरीन मशीन हैं जो समान दूरी और गहराई को ध्यान में रखते हुए आलू के बीजों की बुवाई करती है इसीलिए अधिकांश किसानों द्वारा इस यंत्र का प्रयोग आलू की बीजों की बुवाई में किया जाता है।

आलू की सिंचाई की फव्वारा और ड्रिप सिंचाई विधि

आलू की खेती में हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है इसलिए आलू की खेती में सिंचाई के लिए फव्वारा और ड्रिप सिंचाई विधि का उपयोग किया जाता है।आलू की खेती में सिंचाई की बात करें तो उसके लिए पहली सिंचाई पौधे उगाने के पश्चात तथा दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 15 दिन के पश्चात करना चाहिए।आलू बनने और फूलने के समय यदि पानी की कमी होती है तब पैदावार पर असर पड़ता है इसलिए आलू की खेती में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।आलू के खेत में पंक्तियों में 3 चौथाई से अधिक ऊंचाई तक पानी नहीं भरना चाहिए नहीं तो फसल को नुकसान होता है।

आलू की खुदाई के लिए पोटैटो डिग्गर यंत्र

आलू की फसल के पकने की बात करें तो सामान्य रूप से आलू की फसल के पकने की अवधि लगभग 70 से 135 दिन है किंतु अलग-अलग किस्मों के पकने की अवधि अलग-अलग होती है। आलू की खुदाई आलू की पूर्ण रूप से पक जाने के बाद की जाती है।इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आलू के कंद के जो छिलके हैं वह सख्त होने पर खुदाई करें। आलू की खेती के वैज्ञानिक तरीके में खुदाई के लिए पोटैटो डिग्गर यंत्र का प्रयोग किया जाता है।पोटैटो डिग्गर यंत्र की सहायता से आलू की खुदाई करने पर कम समय में सफलतापूर्वक खुदाई की जा सकती है और इसका उपयोग करने से आलू में बिना नुकसान के आलू जमीन से बाहर निकल जाता हैं।यह यंत्र साथ में लगी मिट्टी को भी हटा देता है।इस प्रकार आलू की खुदाई के पोटैटो डिग्गर यंत्र का प्रयोग करने से अच्छी गुणवत्ता के आलू प्राप्त हो जाते हैं ।इस यंत्र में सही गहराई को सेट किया जाता है और ट्रैक्टर के साथ प्रयोग किया जाता है।इस प्रकार पोटैटो डिग्गर यंत्र का प्रयोग करके आलू की खुदाई की जाती है।

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