गेहूं में नैनो-यूरिया: वरदान या नई चुनौती?
भारत में गेहूं उत्पादन खाद्य सुरक्षा का अहम हिस्सा है। हाल ही में नैनो-यूरिया पर किए गए एक शोध ने इसके प्रभावों को उजागर किया है। यह अध्ययन 2021-2023 के बीच भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली द्वारा किया गया।
नैनो-यूरिया और पारंपरिक यूरिया की तुलना
शोध में पारंपरिक यूरिया और नैनो-यूरिया के साथ जिंक उर्वरीकरण की तुलना की गई।
- परंपरागत यूरिया: 130 किलो एन/हेक्टेयर पर गेहूं की बेहतर पैदावार (अनाज और भूसा) दी।
- नैनो-यूरिया: नाइट्रोजन की खपत कम की लेकिन पैदावार में 6.8-12.4% तक गिरावट आई।
जिंक उर्वरीकरण का असर
0.1% नैनो-जिंक ऑक्साइड का फोलियर स्प्रे:
- गेहूं की पैदावार में 3.7-4.5% तक बढ़ोतरी।
- नाइट्रोजन अवशोषण में सुधार।
उत्पादकता पर प्रभाव
- 130 किलो एन/हेक्टेयर नाइट्रोजन से 23.2-33.1% अधिक पैदावार मिली।
- नैनो-यूरिया अकेले इस्तेमाल करने पर पैदावार में गिरावट देखी गई।
- हालांकि, नैनो-यूरिया ने पर्यावरणीय नाइट्रोजन हानि को कम करने में मदद की।
क्या है भविष्य?
भारत को 2050 तक गेहूं उत्पादन में 46% बढ़ोतरी की जरूरत है। नैनो-यूरिया टिकाऊ कृषि के लिए मददगार हो सकता है, लेकिन इसकी मौजूदा सीमाएं संतुलित उपयोग की मांग करती हैं।
सरकार और उर्वरक कंपनियों को इसके उपयोग के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण, प्रशिक्षण, और तकनीकी सुधार की जरूरत है। सही दिशा में प्रयास गेहूं उत्पादन को नई ऊंचाई पर ले जा सकते हैं।