सब्जियों की खेती में रिले क्रॉपिंग सिस्टम अपनाएं , होगी उपज में बढ़ोतरी

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जानिए, रिले क्रॉपिंग सिस्टम से संबंधित जानकारी

किसान पारंपरिक खेती के साथ सब्जियों की खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं। जो किसान सब्जियों की खेती कर रहे हैं, वे रिले क्रॉपिंग सिस्टम (Relay Cropping System) को अपनाकर अपनी पैदावार को बेहतर बना सकते हैं। रिले क्रॉपिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें एक ही भूमि पर विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती की जाती है। इस तकनीक को अपनाकर किसान अपनी उपज बढ़ा सकते हैं और आमदनी में भी इजाफा कर सकते हैं। खास बात यह है कि इसमें अगली फसल पिछली फसल के कटने से पहले बोई जाती है।

रिले क्रॉपिंग सिस्टम तकनीक क्या है??

रिले क्रॉपिंग तकनीक में एक खेत में एक फसल उगाई जाती है, जबकि दूसरी फसल उसी खेत में बाद में उगाई जाती है ताकि पिछली फसल से बची हुई नमी और पोषक तत्वों का लाभ उठाया जा सके। इसमें पहली फसल को काटने से पहले दूसरी फसल बो दी जाती है, जिससे पहली फसल की नमी दूसरी फसल को मिल जाती है और सिंचाई की जरूरत कम हो जाती है। इसका मतलब है कि कम सिंचाई में अधिक फसलों का लाभ उठाया जा सकता है। यह प्रणाली भूमि और संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने और पैदावार बढ़ाने में मदद कर सकती है।

रिले क्रॉपिंग सिस्टम के फायदे

रिले क्रॉपिंग सिस्टम को अपनाने से कई फायदे होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख फायदे इस प्रकार हैं:

  • सब्जियों की मल्टीक्रॉपिंग से अधिक उपज मिलती है।
  • मल्टीक्रॉपिंग से किसान की आय में वृद्धि हो सकती है।
  • इस तकनीक से किसान को पूरे साल रोजगार मिल सकता है।
  • उर्वरकों का संतुलित उपयोग होता है, जिससे आवश्यकता से अधिक उर्वरक का प्रयोग नहीं होता।
  • फसल चक्र के माध्यम से मिट्टी की सेहत को बनाए रखा जा सकता है।
  • पानी की बचत होती है और मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
  • इस तकनीक से बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है, हालांकि यह फसल के अच्छे प्रकार, सही बुवाई विधि, संसाधनों के सही उपयोग, कीट प्रबंधन और समय पर कटाई पर निर्भर करता है।

इस तकनीक से कौन सी सब्जियां उगाई जा सकती हैं

मल्टीक्रॉपिंग खेती में रिले क्रॉपिंग तकनीक का उपयोग करके कई प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जा सकती है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि किस फसल को किसके साथ बोना चाहिए ताकि अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। उदाहरण के लिए:

  • ककड़ी और मिर्च की खेती: ककड़ी के साथ मिर्च की खेती की जा सकती है, जिसमें रिले क्रॉपिंग तकनीक का उपयोग करके नवंबर से मार्च और फरवरी से अक्टूबर तक दो बार बुवाई की जाती है।
  • मटर और लौकी की खेती: मटर और लौकी की खेती नवंबर से अप्रैल और फरवरी से अक्टूबर तक की जा सकती है। सर्दियों में लौकी की नर्सरी प्लास्टिक की थैलियों में तैयार की जाती है, और फिर फरवरी में क्यारियों में रोपी जाती है।
  • ककड़ी और स्पंज लौकी की खेती: इस तकनीक से ककड़ी और स्पंज लौकी की खेती नवंबर से अप्रैल में की जाती है, और मार्च से अक्टूबर के बीच भी की जा सकती है।
  • आलू-प्याज-हरी खाद की खेती: इनकी खेती सितंबर से दिसंबर, दिसंबर से जून-जुलाई तक की जा सकती है।
  • आलू-पछेती फूलगोभी-मिर्च की खेती: इनकी खेती अक्टूबर से दिसंबर, दिसंबर से मार्च और मार्च से अक्टूबर तक की जा सकती है।

इन फसलों की एक साथ बुवाई से बचें

कुछ फसलें एक साथ नहीं बोनी चाहिए, क्योंकि वे कीटों या रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, टमाटर और मिर्च को एक साथ नहीं बोना चाहिए, क्योंकि इनमें कीट और रोग का खतरा अधिक रहता है।

इन फसलों को एक साथ लगाना लाभकारी

गहरी जड़ वाली फसलों के बाद उथली जड़ वाली फसलों को उगाना बेहतर होता है ताकि वे मिट्टी के सभी परतों से पोषक तत्वों का सेवन कर सकें। जैसे कि मटर और सेम जैसी फलियां लगाना फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि ये वातावरण से नाइट्रोजन अवशोषित करती हैं और इसे मिट्टी में संग्रहित करती हैं, जो अन्य फसलों के लिए लाभकारी होती हैं।

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